लोग डूबते हैं तो समंदर को दोष देते हैं, मंजिल न मिले तो किस्मत को दोष देते हैं : मोहनदास नगाइच
वागीश्वरी साहित्य परिषद की मासिक गोष्ठी में काव्य रचनाकारों ने दी बेहतरीन प्रस्तुति
कोंच। तिलक नगर स्थित गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित वागीश्वरी साहित्य परिषद की मासिक गोष्ठी में ऐसी काव्य रसधार बही कि श्रोता झूम उठे। गोष्ठी की अध्यक्षता मयंक मोहन गुप्ता ने की जबकि मुख्य अतिथि रामसहाय सेठ रहे।
मुन्ना यादव विजय ने वाणी वंदना के माध्यम से मां सरस्वती का आह्वान कर कार्यक्रम को गति प्रदान की। उन्होंने अपनी रचना बांची, ‘यही सच मानिए कि वो सच बता नहीं पाता, जो शख्स आपसे नजरें मिला नहीं पाता।’ अंतरराज्यीय मंचों के अभिनंदित कवि नरेंद्र मोहन मित्र ने रचना पाठ करते हुए कहा, ‘न हम उनके बराबर हैं न वो मेरे बराबर के, किए रोशन चिराग हमने जिगर अपना जलाकर के।’ सामयिक समस्याओं और सामाजिक विद्रूपताओं को लेकर रचनाएं गढने में माहिर सुनील कांत तिवारी ने रचना बांची, ‘नमक तादाद से ज्यादा रगों में हो नहीं सकता, बड़ा बनने की चाहत में समंदर हो नहीं सकता।’
मोहनदास नगाइच ने रचना पाठ किया, ‘लोग डूबते हैं तो समंदर को दोष देते हैं, मंजिल न मिले तो किस्मत को दोष देते हैं।’ वरिष्ठ रंगकर्मी व कवि भास्कर सिंह माणिक्य ने कहा, ‘जिसे समझा मैंने अपना उसी ने पीठ पर मेरे वार किया है डटकर, किसकी कहूं कैसे कहूं ये बात है मेरी सभी से आज हटकर।’ संतोष तिवारी सरल ने कहा, ‘करुणा पर आभार निर्भर करता है मंशा पर विचार निर्भर करता है, बिना सिखाए कुछ भी नहीं होने वाला शिक्षा पर संस्कार निर्भर करता है।’ नंदराम भावुक ने आध्यात्म से जोड़ते हुए रचना पढी, ‘सुन ऐ मानव नादान तूने खुद को न पहचाना, अंतस में तेरा भगवान फिरता क्यों अनजाना।’ ओंकार नाथ पाठक, कालीचरण सोनी, चित्तर सिंह निरंजन, आशाराम मिश्रा आदि ने भी रचना पाठ किया। संचालन सुनीलकांत तिवारी ने किया। इस दौरान चंद्रशेखर नगाइच, कृष्ण कुमार बिलैया, नारायण दास, अनिल कुमार लोहिया, सीताराम नगरिया, ब्रजबिहारी सोनी, ब्रजेश तिवारी, कृष्ण गोपाल, परशुराम वर्मा, तुलसी राम वर्मा, अनिल टंडन, सुदर्शन श्रीवास्तव, संतोष सक्सेना आदि मौजूद रहे।