क़िताबें पढ़ कर क्या करेंगे साहब ! कबाड़ बीन कर कम से कम दो वक्त की रोटी तो मिलेगी

जगम्मनपुर। इसे ईश्वर की परीक्षा कहें या पूर्व जन्म के पस्ताचाप कहे हैं कि गुरुवत की लकीर के नीचे जीवन यापन करने वालों को दण्ड देता ही है ईश्वर।
गरीबी होती ही ऐसी है जो कुछ भी करवा सकती है और इससे जूझ रहे परिवारों के बच्चे वह सब कुछ करने के लिए मजबूर हैं जो कम से कम पढ़ने लिखने की उम्र में नहीं करने चाहिए। ऐसे ही 9 वर्षीय रवि की कहानी सुनकर बरबस ही आंखों में आसूं निकल आए। उस ने मीडिया को बताया कि आज के लगभग सात वर्ष पहले बाबा जी की मृत्यु हो गई। इसके बाद दादी चल बसी इसी चिंता में दिन रात डूबे पापा की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। घर में तीन भाईयों में मैं ही बड़ा हूँ। इसलिए मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई। सबसे बड़ा मैं हूँ बीच का दीपक 9 वर्ष सबसे छोटा समीं 5 वर्ष है अगर मैं कवाड़ नहीं बीनूंगा तो शाम को समीं को दूध कहां से लाऊंगा। जब शाम को घर जाता हूं तो सभी मेरी राह देखता है हम दोनों भाई कबाड़ बीनते बीनते कहीं बाजार में प्यास लगती है तो बाजार के लोग भगा देते है कोई पानी पिलाता भी है तो दूर से। इसके पहले मैं देवी मां की मूर्ति लेकर घर घर जाकर दर्शन कराते था तो बदले में लोग थोड़ा सा आटा या अनाज दे देते थे। लेकिन अब वो भी भगा देते हैं। रवि दीपक समीं ऐसे गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं जो पेट की आग शांत करने के लिए गर्मी हो या सर्दी या वारिस दो वक्त की रोटी के लिए कूड़े के ढेर में अपनी रोज जिंदगी तलाशनी पड़ती है।