श्री आघ गणेश चतुर्थी व्रत करने से सभी संकटों का निवारण होता है : पं० विष्णुकांत मिश्रा
श्री माघ गणेश चतुर्थी व्रत मेला प्राचीन मंदिर गढ़ी पर 29 जनवरी दिन सोमवार को

कोंच (पीडी रिछारिया)। सरस कथा वाचक पं. विष्णुकांत मिश्रा शास्त्री ने श्री आघ गणेश चतुर्थी व्रत की महिमा बताते हुए कहा, इस व्रत को करने से सभी संकटों का निवारण होता है। माघ चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस दिन श्री गणेश सेवा समिति प्राचीन मंदिर गढ़ी कोंच के तत्वाधान में माघ गणेश चतुर्थी व्रत मेला सोमवार को आयोजित किया जाएगा।
यह मेला पिछले कई दशकों से आयोजित होता आ रहा है। इस बार यह मेला 29 जनवरी सोमवार को है। यह माघ कृष्ण चतुर्थी, संकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी का व्रत है। इस चतुर्थी को ‘श्री गणेशोत्पत्ति’ आघ बडे़ गणेश माघी कृष्ण चतुर्थी’, ‘तिलचौथ’, ‘वक्रतुंडी चतुर्थी’ आदि नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गणेश भगवान तथा संकट माता की पूजा का विधान है। संकष्ट का अर्थ है ‘कष्ट या विपत्ति’, ‘कष्ट’ का अर्थ है ‘क्लेश’, सम् उसके आधिक्य का द्योतक है। आज किसी भी प्रकार के संकट, कष्ट का निवारण संभव है। आज के दिन व्रत रखा जाता है। इस व्रत का आरंभ ‘गणपतिप्रीतये संकष्टचतुर्थीव्रतं करिष्ये’ इस प्रकार संकल्प करके करें। सायंकाल में गणेशजी का पूजन एवं दर्शन चंद्रोदय के समय चंद्र का पूजन करके अर्घ्य दें। नारदपुराण, पूर्वभाग अध्याय 113 में संकष्टीचतुर्थी व्रत का वर्णन मिलता है, इसके अलावा भविष्यपुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है। आज के दिन क्या करें को लेकर पं. विष्णुकांत शास्त्री बताते हैं, गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अत्यंत ही शुभकारी होगा। गणेश भगवान को दूध (कच्चा), पंचामृत, गंगाजल से स्नान कराकर, पुष्प, वस्त्र आदि समर्पित करके तिल तथा गुड़ के लड्डू, दूर्वा का भोग जरूर लगाएं। लड्डू की संख्या 11 या 21 रखें। गणेश जी को मोदक (लड्डू), दूर्वा घास तथा लाल रंग के पुष्प अति प्रिय हैं। गणेश अथर्वशीर्ष में कहा गया है ‘यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति’ अर्थात जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। ‘यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति’ अर्थात जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा पूजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है।