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कोरोना संक्रमण के बढ़ते हुए मामले बना चिंता का विषय

कोरोना संक्रमण के नए मामलों में बढ़ती तेजी अब चिंताजनक रूप लेती जा रही है। रोज नए आने वाले केसों की संख्या हाल तक अस्पतालों से डिस्चार्ज होने वाले लोगों की तादाद से कम हुआ करती थी, लेकिन अभी यह उससे कहीं आगे निकल चुकी है। शुक्रवार को इन दोनों आंकड़ों के बीच चार हजार से भी ज्यादा का अंतर दर्ज किया गया था। लेकिन गौर करने की बात यह है कि नए मामलों में आ रही यह तेजी देशव्यापी नहीं, बल्कि कुछ खास राज्यों में केंद्रित नजर आ रही है। सोमवार को पूरे देश में नए केसों की संख्या 18,599 दर्ज की गई जिनमें 11,141 मामले अकेले महाराष्ट्र के थे। केरल के मामले 2,100 और पंजाब के 1,043 थे। यानी नए केसों का 75 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सिर्फ इन तीनों राज्यों से आ रहा है। खास तौर पर महाराष्ट्र की स्थिति ज्यादा गंभीर नजर आती है। वहां औरंगाबाद जिले में न केवल नाइट कर्फ्यू लगाया गया है बल्कि सप्ताहांत यानी शनिवार-रविवार को पूर्ण लॉकडाउन की भी घोषणा कर दी गई है। मुंबई समेत कई शहरों में दोबारा लॉकडाउन घोषित करने की संभावना मुख्यमंत्री जाहिर कर चुके हैं।
इस बीच देश में टीकाकरण अभियान भी पूरी तेजी पर है। अब तक लोगों को टीके के 2 करोड़ से ज्यादा डोज दिए जा चुके हैं। हालांकि टीकाकरण को लेकर आने वाली कुछ खबरों से गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं। ताजा मामला गुजरात के गांधीनगर का है जहां टीके के दोनों डोज लेने के बाद एक स्वास्थ्यकर्मी कोरोना पॉजिटिव पाया गया। उसे पहला डोज 16 जनवरी को और दूसरा डोज 15 फरवरी को दिया गया था, मगर शुरुआती लक्षणों के बाद टेस्ट किए जाने पर 20 फरवरी को उसे कोरोना संक्रमित बताया गया। अब कहा जा रहा है कि दोनों डोज लेने के बाद भी एंटीबॉडी डिवेलप होने में 45 दिन लगते हैं। यह स्पष्टीकरण तो इस केस से भी ज्यादा चिंताजनक है। हरियाणा के मंत्री अनिल विज जब टीका लेने के बाद कोरोना पॉजिटिव निकले तब कहा गया कि दोनों डोज लेने के बाद ही टीके का असर होता है। अब कहा जा रहा है कि दोनों डोज लेने के बाद भी असर शुरू होने में डेढ़ महीना लग जाता है। अगर सचमुच ऐसा है तो यह जानकारी टीकाकरण शुरू करते समय ही क्यों नहीं व्यापक तौर पर प्रचारित की गई। जो स्वास्थ्यकर्मी पहले से ही दिन-रात संक्रमण के खतरों से जूझते हुए अपने काम को अंजाम दे रहे हैं, वे टीका लेने के बाद स्वाभाविक ही थोड़ा निश्चिंत हो गए होंगे, यह सोचकर कि वे सुरक्षा घेरे के अंदर हैं। 45 दिन बाद एंटीबॉडी डिवेलप होने की बात न बताना उन सबकी जिंदगी को खतरे में डालना है, जो किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकता। जब तक मामला सामने न आए तब तक व्याख्या को दबाए रखने का यह रवैया टीके को ही नहीं टीकाकरण अभियान को भी संदिग्ध बनाता है। पूर्ण पारदर्शिता ही इस संकट का अकेला निदान है।

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