बुन्देलों ने तो निभाया अपना फर्ज, अब नेतृत्व की है बारी

झांसी। जिले की तीन सीटों पर भाजपा ने एक बार पुनः परचम फहराया है। एक अन्य सीट जो भाजपा ने गठबंधन साथी अपना दल को दी थी, वहां भी उसे जीत मिली है। देखा जाए तो केवल झांसी ही नहीं बुंदेलखंड की 19 सीटों में से 16 पर भाजपा ने जीत हासिल की है और काफी हद तक 2017 की कहानी दोहराई है। भाजपा ने चित्रकूट में एक कर्वी सीट और बांदा में बबेरु सीट खोई है। एक और सीट जिस पर भाजपा को नुकसान हुआ है वह जालौन जनपद की कालपी सीट है जो उसने गठबंधन धर्म निभाते हुए साथी दल निषाद पार्टी के लिए छोड़ी थी। कहां जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पार्टी से कालपी और कर्वी सीट पर निर्णय लेने में गलती हुई है। कालपी सीट निषाद बाहुल्य है जरुर लेकिन यहां के निषादों पर समाजवादी पार्टी का असर ज्यादा है। इसकी एक वजह बीहड़ क्वीन फूलन देवी रहीं हैं जो समाजवादी पार्टी से सांसद थीं और निषाद समुदाय से ताल्लुक रखतीं थीं। इसीलिए यहां कांग्रेस से पाला बदल समाजवादी पार्टी में आए विनोद चतुर्वेदी को सफलता मिली भी। कर्वी सीट से चंद्रिका प्रसाद को मुकाबले में आरंभ से ही नहीं माना जा रहा था। लेकिन ब्राह्मण होने के नाते उनका टिकट रिपीट किया गया। अन्य सीटों पर पार्टी को अपेक्षानुरूप परिणाम मिले।
बात झांसी जिले की चारों विधानसभा सीटों की करें तो यह गौर करने लायक है कि यहां से झांसी सदर सीट से रवि शर्मा और बबीना सीट से राजीव सिंह के टिकट काटे जाने की चर्चाएं जोरों पर थीं। पार्टी ने मऊरानीपुर सीट पर प्रत्याशी बदला भी। लेकिन अपना दल की जिद के चलते उसे यह सीट अनुप्रिया की पार्टी को देनी पड़ी। सिंबल बदले जाने के कारण यहां पहले भाजपा फिर अपना दल में पाला बदलीं सिटिंग विधायक रश्मि को कमजोर प्रत्याशी समझा जा रहा था। इसका एक कारण सपा प्रत्याशी जो बसपा छोड़ सपा में आए थे, तिलक अहिरवार की जाटव वोटों पर पकड़ थी। उन्हें यादव और मुस्लिम वोटों का अतिरिक्त फायदा था लेकिन भाजपा की चतुर रणनीति ने सारे समीकरण फेल कर दिए। लगभग यही हाल गरौठा सीट का रहा जहां इस बार बाहुबलि सपा प्रत्याशी दीपक यादव को सबल माना जा रहा था। लेकिन अंतिम समय में सपा-भाजपा प्रत्याशी के मध्य हुए विवाद और मारपीट ने समीकरण पलट दिए।
झांसी सदर और बबीना सीटों पर भाजपा की जीत आरंभ से ही तय मानी जा रही थी। उस पर दोनों सीटों के प्रत्याशियों के लिए पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यह कहना कि आप दोनों प्रत्याशियों को जिता कर भेजो, मैं उन्हें बड़ा बनाऊंगा। उसके बाद मुख्यमंत्री के रोड शो और सभाओं ने जीत की अंतिम मुहर ही लगा दी।
राजीव का मुकाबला बबीना में यूं आसान न था, जहां सपा के शीर्षस्थ नेताओं में से एक और राजनीतिक चाणक्य डा चंद्रपाल यादव के बेटे यशपाल मैदान में थे। यशपाल यूं तो अभी राजनीति में बच्चे माने जाते हैं। इसलिए यहां चंद्रपाल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी।
झांसी में भी समाजवादी पार्टी ने बसपा छोड़ आए कद्दावर नेता और कुशवाहा समाज के बड़े चेहरे सीताराम कुशवाहा पर दांव खेला। सपा मुस्लिम और यादव वोटों के सहारे यहां रवि को शिकस्त देने के लिए आश्वस्त लग रही थी। कांग्रेस ने यहां से वरिष्ठ ब्राह्मण नेता राहुल रिछारिया को खड़ा कर रवि की राह मुश्किल बनाने की कोशिश की लेकिन न तो सपा का एमवाय का दांव चला और न कांग्रेस का ब्राह्मण कार्ड। रवि ने इस बार पिछली बार से भी बड़ी जीत दर्ज की है।
अब मुद्दे की बात यह है कि बुंदेलखंड में जनता ने एक बार पुनः भाजपा को 5 साल अमरता का वरदान दे दिया है और झांसी ने भी। लेकिन क्या अमित शाह भरी सभा में झांसी के रवि और बबीना से राजीव को बड़ा बनाने का वादा कर उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने के संकेत दे गये थे, वे पूरे होंगे। इस बार झांसी से रवि को मंत्री बनाने की प्रबल संभावनाएं हैं लेकिन मऊरानीपुर से रश्मि आर्या उनकी राह का रोड़ा बन सकतीं हैं जिन्हें अपना दल अपने कोटे से आगे कर सकता है। राजीव सिंह भी इस दौड़ में हैं। तो फिर यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार रवि, राजीव और रश्मि में से कौन मंत्रिमंडल में जगह बनाएगा। चूंकि कर्वी से चंद्रिका प्रसाद के हारने और ललितपुर से फिलहाल मंत्रिमंडल का हिस्सा मन्नू कोरी को मंत्रिमंडल से बाहर जाना तय है तो आगे कौन लालबत्ती की दौड़ में सफल होगा, यह देखने के लिए 15 मार्च को संभावित मंत्रिमंडल के गठन का इंतजार करना पड़ सकता है।