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विद्वानों के लिए उत्सुकता, भक्तों के लिए प्रेम की प्रतीक है हलधर के हाथों में मुरली

कोंच (पीडी रिछारिया) योगेश्वर कृष्ण के अग्रज बलराम शेषावतार हैं, वस्तुत: इन्हें भी बिष्णु का ही अवतार माना गया है। इन्हें मुख्य रूप से विष्णु के दशावतारों का निरुपण करने वाले प्रस्तर फलकों पर ही उत्कीर्ण किया गया है। वृहत्संहिता उनके एक हाथ में हल प्रदर्शित किए जाने का निर्देश देती है। परवर्ती ग्रंथों में द्विभुज एवं चतुर्भुज बलराम का निरुपण किया गया है। इनके मस्तक पर आदि शेष के फण प्रदर्शित हैं और अग्नि पुराण के अनुसार बलभद्र के हाथों में गदा या मूसल तथा हल प्रदर्शित करने का निर्देश है, किंतु कोंच के सागर सरोवर के तट पर अवस्थित बल्दाऊ मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान बलभद्र के हाथों में स्थित मुरली श्रद्घालुओं और विद्वानों को विस्मित करने बाली है। भगवान बलभद्र का यह स्वरूप विद्वानों के लिए उत्सुकता जगाने वाला है लेकिन शायद भक्तों के लिए मुरली प्रेम की प्रतीक है।

गल्ला व्यापारियों की संस्था श्री धर्मादा रक्षिणी सभा द्वारा संचालित बल्दाऊ मंदिर में विराजमान रेवतीरमण बल्दाऊ जी महाराज के हाथों में उनके परंपरागत आयुधों हल और मूसल के स्थान पर मुरली को लेकर कदाचित् यहां के विद्वानों को भी आश्चर्य है लेकिन उनके श्रीविग्रह की बनावट ही ऐसी है जो मुरलीधर है, मुरली के इस निरुपण को लेकर विद्वानों की कोई ठोस राय भले ही न हो लेकिन विद्वत् परिषद् के विद्वान कीर्तिशेष पंडित ज्वालाप्रसाद दीक्षित कहा करते थे कि वस्तुत: जिस प्रकार कृष्ण का आयुध सुदर्शन है लेकिन सामान्यत: उनके हाथों में मुरली ही प्रदर्शित होती है जो प्रेम की प्रतीक है, ठीक उसी प्रकार भगवान बलभद्र के हाथों में उनके परंपरागत आयुध हल और मूसल के स्थान पर मुरली भी प्रेम का संदेश देती प्रतीत होती है। मंदिर में विराजमान भगवान बलभद्र के श्रीविग्रह की कलाकृति भी मुरली थामने वाली मुद्रा में है, संभवत: इसी लिये प्राण प्रतिष्ठा के समय तत्कालीन विद्वानों ने उनके हाथों में मुरली स्थापित की होगी। बल्दाऊ की इस मनोहारी झांकी और उनकी भाव भंगिमा देख कर यहां के तत्कालीन मूर्धन्य विद्वान और व्याकरणविद् पंडित रामनाथ चतुर्वेदी ने भी उनकी जो स्तुति प्रतिपादित की है उसमें बलभद्र जी को मुरलीधर की संज्ञा दी गई है –

कृष्णाग्रजो यदुवरो द्विविद प्रहर्ता,
धर्ता हलस्य मुसलस्य प्रलंब हंता।
नीलांबरो विजयतां बलभद्र एष:,
हलधरं मुरलीधर सोदरं मुसलपाणि मलं करुणाकरम्।।

103 वर्ष पूर्व रखी गई थी बल्दाऊ मंदिर की आधारशिला –
कोंच के सागर सरोवर के तट पर अवस्थित बल्दाऊ धर्मशाला में स्थित श्री बल्दाऊ मंदिर की आधार शिला श्री धर्मादा रक्षिणी सभा जो उस समय अपंजीकृत थी, द्वारा रखी गई थी। चूंकि एक अजीबोगरीब घटनाक्रम के तहत बलभद्र जी की प्रतिमा पहले ही कोंच आ चुकी थी, इसलिए कोंच के धर्मानुरागियों ने धर्मशाला की स्थापना के साथ 4 अगस्त 1919 को महंत चतुर्भुजदास ने मंदिर की आधार शिला का भी आयोजन करा दिया था। इस प्रकार बल्दाऊ मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। बल्दाऊ मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान बलभद्र का श्रीविग्रह अति प्रचीन बताया गया है, इसे कहां से मंगाया गया है इसके कोई ठोस अभिलेखीय साक्ष्य तो नहीं उपलब्ध हो सके हैं लेकिन एक जनश्रुति के अनुसार समीपस्थ ग्राम चमरसेना में एक कृषक के यहां यह श्री विग्रह भूसे के ढेर में दवा पड़ा मिला था, यह बात मंदिर स्थापित होने के कई दशक पूर्व की है। इस बाबत जब कोंच के धर्मानुरागियों को ज्ञात हुआ तो वे गाजे बाजे के साथ इसे कोंच ले आए। इस दुर्लभ मूर्ति को प्रतिष्ठापित करने के लिए ही धर्मशाला में मंदिर का निर्माण कराया गया था। वर्ष 2004 में मंदिर और धर्मशाला का जीर्णोद्घार श्री धर्मादा रक्षिणी सभा द्वारा कराया गया था और मैया रेवती जी की कई बर्ष से खंडित प्रतिमा के स्थान पर नई प्रतिमा मंगा कर विधि विधान के साथ प्रतिष्ठित कराई गई थी।

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