साहब जरा ध्यान दें ! छह संतानों के साथ गरीब विधवा टूटे छप्पर के नीचे करती है अपना जीवन यापन

जगम्मनपुर। छह संतानों के साथ रहकर गरीब विधवा मां टूटे छप्पर अथवा पेड़ के नीचे अपना जीवन यापन करने को मजबूर है।
विकासखंड रामपुरा अंतर्गत ग्राम जगम्मनपुर में अब तक शासन की ओर से सैकड़ों आवास आवंटित किए गए। जिसमें पात्र गरीबों के साथ-साथ कुछ अपात्र लोग भी तिगड़म लगाकर प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ उठाकर आवास पाने में सफल रहे। लेकिन अपनी गरीबी के कारण प्रधानमंत्री आवास की जुगाड़ लगा पाने में असफल रही गरीब दलित विधवा आज भी अपने पड़ोसियों की दीवार के सहारे छप्पर लटका कर अपनी छह संतानों के साथ खुले आकाश के नीचे रहकर कठिनाई से भरण पोषण कर रही है। ग्राम जगम्मनपुर में वार्ड क्रमांक 3 में किला के पीछे मिथलेशी उम्र लगभग 54 वर्ष अपनी छह संतान विवेक 19 वर्ष, टिंकू 17 वर्ष, चिंटू 15 वर्ष, प्रिंस 10 वर्ष, कामिनी 12 वर्ष, करिश्मा 8 वर्ष के साथ रहकर बमुश्किल किसी तरह जीवन यापन कर रही है। बेवा मिथलेशी के पति लगभग 8 वर्ष पूर्व बीमारी के कारण असमय काल के गाल में समा गए। पति की मृत्यु के बाद गांव वालों एवं रिश्तेदारों की मदद से बेवा मिथलेशी ने अपनी बड़ी बेटी शारदा के किसी तरह हाथ पीले किए। विवाह में जो कर्जा हुआ उसे चुकाने के लिए स्वयं मजदूरी की एवं अपने नाबालिक पुत्रों को भी मजदूरी पर भेजा। परिवार का भरण पोषण एवं कर्ज उतारने की चिंता में घर की पुरानी कच्ची दीवार है कब गिर गई अहसास भी नही कर पाया कि वह कब खुले मैदान में आ गई, वर्तमान स्थिति यह है कि पूरा घर प्लाट हो गया एक भी कच्ची पक्की दीवार नहीं रही चारों ओर सिर्फ पड़ोसियों के बने पक्के मकानों की दीवारे जिसमें अपने प्लाट में जाने के लिए चार फुट की छोटी सी गैलरी और अंदर पडोसियों के पक्के मकानों की दीवारों के सहारे टूटे छप्पर लटकाए सर्दी धूप बरसात से बचाव कर रही हैं। विधवा मिथलेशी ने बताया कि जिस दिन मजदूरी नहीं मिलती उस दिन कल की चिंता में सभी को एक समय भूखे पेट सोना पड़ता है। अंत्योदय कार्ड में 35 किलो खाद्यान्न मिलता है जो 10-12 दिन के लिए पर्याप्त होता है। घर में मजबूरी व गरीबी के कारण मोबाइल भी नहीं है, बच्चों को सोने के लिए चारपाई, बिस्तर नहीं है। बस किसी तरह से जीवन यापन किया जा रहा है। विधवा मिथलेशी ने कहा कि यदि हमें भी एक दो कमरे वाला प्रधानमंत्री आवास योजना वाला आवास मिल जाता तो हमारा परिवार भी पक्की छत के नीचे बैठने का सुखद अनुभव कर लेता।