बुंदेलखंड में बासेरा के नाम से जाना जाने वाला शीतला अष्टमी व्रत 2 अप्रैल को
कोंच (पीडी रिछारिया)। बुंदेलखंड में बासेरा के नाम से जाना जाने वाला शीतला अष्टमी व्रत 2 अप्रैल को रखा जाएगा। उस दिन देवी मां को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। ये एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें ठंडा यानी बासी भोजन खाने की परंपरा है। मान्यता तो यहां तक है कि उस दिन चूल्हा भी नहीं जलता है।
अखिल भारतीय सनातन धर्म रक्षिणी सेवा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्योतिर्विद पं. संजय रावत शास्त्री बताते हैं कि यह व्रत चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन लोग बासी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। शीतला माता को चेचक की देवी और सफाई का प्रतीक भी माना जाता है जो ताप या अग्नि उत्पन्न करने वाले रोगों से भक्तों को मुक्त करतीं हैं। शीतला माता का ही एक व्रत ऐसा है जिसमें शीतल यानी ठंडा भोजन किया जाता है। इस व्रत पर एक दिन पहले बनाए हुए भोजन को देवी को निवेदित किए जाने के पश्चात उसे प्रसाद के रूप मे ग्रहण करने की परंपरा है इसलिए इस व्रत को बासेरा या बसियौरा भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं।
लेकिन राजा विराट ने देवी शीतला को अपने राज्य में रहने देने से मना कर दिया था। राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई थीं। उनके क्रोध की अग्नि से राजा सहित प्रजा की त्वचा पर लाल लाल दाने उत्पन्न हो गए थे और लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी। तब राजा विराट ने अपनी भूल स्वीकार कर श्रद्धापूर्वक माता शीतला से माफी मांगी थी। इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चे दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया था, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ था। तभी से माता शीतला देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडा भोजन करने से संक्रमण एवं अन्य तरह की बीमारियां नहीं होती हैं। वहीं इस व्रत के समय गर्मी का प्रभाव भी शुरू हो जाता है। ऋतु के बदलने पर खान-पान में भी बदलाव किया जाता है। इसलिए ठंडा भोजन करने की परंपरा इस व्रत से चली आ रही है।