मुस्लिम वोटरों पर टिकी गैरभाजपाई दलों और निर्दलीय प्रत्याशी की निगाहें

कोंच (पीडी रिछारिया) आसन्न निकाय चुनाव में पालिका सीमा में रहने वाले नागरिकों के ज्वलंत मुद्दे भले ही नदारत हों और कमोवेश सभी प्रत्याशियों के समर्थकों की सोशल मीडिया टीमें ऊलजलूल बयानबाजी कर मतदाताओं को भ्रमित करने में लगी हों, लेकिन मुस्लिमों की प्राथमिकता और मानसिकता अभी भी भाजपा विरोधी बनी हुई है जिसके चलते आसन्न चुनाव में कमोवेश सभी गैरभाजपाई प्रत्याशियों की निगाहें मुस्लिम वोटरों पर टिकी हैं। हालांकि मुस्लिम मतों को लेकर किसी के लिए ज्यादा खुशफहमी पालने की जरूरत नहीं है। इसकी वजह, अभी तक यह साफ नहीं है कि मुस्लिम वोट किसके पाले में है क्योंकि यह तबका खुद पशोपेश में है कि वह किसके साथ जाए, लेकिन जो स्थितियां बन रहीं हैं उनमें मुस्लिम वोटर कम ज्यादा संख्या में चार जगह बंटता दिखाई दे रहा है।
कोंच नगर पालिका अध्यक्ष सीट अनारक्षित होने के चलते इस पर मुकाबला काफी दिलचस्प है। पिछले निकाय चुनाव में जीत दर्ज कराने बाली कांग्रेस के लिए मुस्लिम प्रत्याशी होने के बावजूद अबकी दफा जीत हासिल करना उन स्थितियों में भी दूर की कौड़ी है जब पालिका क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब 14 हजार वोटर मुस्लिम हैं। मोदी फैक्टर को गैरभाजपा दलों के नेताओं ने इतना बड़ा हौव्वा बना दिया है जिसके चलते मुस्लिम मतदाता भाजपा के खिलाफ तो है लेकिन वह किसके पाले में जाकर खेल रहा है, यह कह पाना मुश्किल है। गौरतलब है कि कोंच पालिकाध्यक्ष पद के लिए कुल आठ प्रत्याशी मैदान में हैं जिनमें भाजपा से प्रदीप गुप्ता, सपा से सुषमा शुक्ला, बसपा से शीतल कुशवाहा, कांग्रेस से तौसीफ अहमद, एआईएमआईएम से डॉ. संजीव निरंजन के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार विज्ञान विशारद सीरौठिया, काजी सिराज उद्दीन एवं सुरेश गुप्ता शामिल हैं।
काजी सिराज उद्दीन हालांकि एआईएमआईएम से टिकिट के दावेदार थे लेकिन पार्टी द्वारा डॉ. संजीव निरंजन को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद सिराज ने बगावत का झंडा बुलंद करते हुए बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतर कर एआईएमआईएम प्रत्याशी के लिए भले ही मुश्किलें खड़ी कर दी हैं लेकिन थोड़ा बहुत प्रतिशत मुस्लिम वोट अभी भी एआईएमआईएम के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है। इन दोनों ही प्रत्याशियों को तो मुस्लिम वोटों की दरकार है ही, कांग्रेस प्रत्याशी तौसीफ अहमद और सपा की सुषमा शुक्ला को भी इन वोटों का अधिसंख्य उनके पाले में आने का पूरा भरोसा है।
हालांकि पूर्व में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मुस्लिम मतों पर बसपा की भी ताबेदारी अच्छी खासी रही है लेकिन उसके और कांग्रेस के कमजोर होने के बाद मुस्लिम वोट सपा के साथ खड़ा नजर आ रहा है, अलबत्ता निकाय चुनाव ज्यादातर जातिवाद पर ही लड़े और जीते गए सो इस चुनाव में देखना लाजिमी होगा कि एआईएमआईएम, कांग्रेस, बसपा और निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवार कितने कितने फीसदी मुस्लिम वोट अपने पाले में कर पाते हैं।