उत्तर प्रदेशजालौनटॉप हेडलाइंसबड़ी खबर

देश का बजट 2023-24 : कब आएगा दलितों एवं आदिवासियों के लिए अमृतकाल…?

दलित, आदिवासी बजट को खर्च न करना, दुसरे मदों में डायवर्जन, SCP/TSP गाइड लाइन का उलंघन : कुलदीप बौद्ध

उरई/जालौन। बहुत गाजे-बाजे के साथ वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने कल बजट पेश किया, जिसमें एक बार फिर उन्होंने आने वाले सुनहरे कल का सपना दिखाते हुए अमृत काल का डंका पीटा। महंगाई सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं और पिछले कुछ सालों में बेरोज़गारी भी बढ़ती जा रही है, लेकिन बजट में इन चुनौतियों से निपटने की कोई राह नहीं सुझाई गई है। 1 फरवरी को देश का बजटपेश कर दिया गया, इस बजट में दलितों, आदिवासियों, महिलाओं व युवाओं के लिए क्या ? इसको लेकर दलित बजट समीक्षा व अनुसूचित जाति/जनजाति उपयोजना (SCP/TSP) आवंटन एक अवलोकन व बजट विश्लेषण व मांग को लेकर बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन, एनसीडीएचआर. द्वारा गणेशधाम उत्सव गृह उरई-जालौन में चर्चा/मीडिया संवाद किया गया।

देश के बजट 2023 के विश्लेषण को एससीपी./टीएसपी. के विशेष सन्दर्भ रखते हुए बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच संयोजक/संस्थापक एवं रिसर्चर कुलदीप कुमार बौद्ध ने कहा कि वित्त वर्ष 2023-24 का कुल बजट 49,90,842.73 करोड़ रूपए है और अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल आवंटन 1,59,126.22 करोड़ रूपए और अनुसूचित जनजाति के लिए कुल आवंटन 1,19,509.87 करोड़ रूपए है। इनमें से दलितों को पहुंचने वाली लक्षित राशि 30,475 करोड़ रूपए है और आदिवासियों को पहुंचने वाली लक्षित राशि 24,384 करोड़ रूपए है। दलित संगठन लंबे समय से पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लिए 10,000 करोड़ रूपए के आवंटन की मांग कर रहे हैं।

हालांकि इस वर्ष का कुल आवंटन इस मांग से कम है, लेकिन योजना के आवंटन में की गई बढ़ोत्तरी स्वागत-योग्य है। इस योजना के लिए अजा बजट के तहत 6359.14 करोड़ रूपए और अजजा बजट के तहत 1970 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं। NCRB के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले कुल 50,000 अपराधों के मामले दर्ज किए गए, जिसमें 8000 अपराध दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ किए गए थे। इसके बावजूद, POA और PCR अधिनियमों के कार्यान्वयन के लिए आवंटित किए गए 500 करोड़ रूपए के बजट में दलित महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों से नपटने के लिए सिर्फ 150 करोड़ रूपए ही आवंटित किए गए हैं। जैसाकि आमतौर पर होता है, ज़्यादातर घोषणाएं जुमलेबाज़ी है, जिनसे इन समुदायों को कोई लाभ नहीं होने वाला है। अमृत काल में अजा और अजजा समुदायों के विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, लेकिन इस बजट में ऐसी कोई पहल नहीं की गई है।

बजट 2023-24 पर टिप्पणी करते हुए मंच के साथी दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन की समन्वयक रिहाना मंसूरी ने कहा की सरकार ने जो बजट पेश किया है उसमे जेंडर बजट को देखे तो बहुत ही कम दिया गया है सरकार महिलाओं के लिए बड़े बड़े वादे करती है लेकिन बजट में दलित महिलाओं के लिए कुछ भी नहीं है आज हमारी दलित वाल्मीकि महिलाये मैला ढो कर अपने बच्चो का पेट भर परिवार का गुजर बसर करती है वही मैला ढोने वाली महिलाओं के पुनर्वास के लिए बजट ही खत्म किया है। ज्योति ने कहा की बहुत दुखद है कि ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध अधिनियम 2013’ के पारित किए जाने के एक दशक बाद भी मैला ढोने की घिनौनी प्रथा अब भी ज़िंदा है।

MSJE द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, देश भर में 58,089 मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की गई है। लेकिन निराशाजनक बात है कि ‘मैला उठाने वालों के पुनर्वास के लिए स्वरोजगार योजना’ को इस साल हटा दिया गया है और इसके लिए कोई आवंटन नहीं किया गया है। नमस्ते नाम की एक नई योजना के लिए 97 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं, जिसका उद्देश्य स्वछता कार्य में मशीनीकरण को बढ़ावा देना है। विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों (PVTG) के विकास के लिए 256 करोड़ रूपए के आवंटन के साथ नए मिशन का गठन एक स्वागत-योग्य कदम है। एकलव्य आदर्श आवासीय स्कूलों पर ध्यान दिया जाना अ.जा. समुदायों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इस वित्त वर्ष में इसके आवंटन को बढ़ा कर 5943 करोड़ रूपए किया गया है।

बजट पर बात रखते हुए नंदकुमार बौद्ध ने मजदूरों के लिए चलायी जा रही योजनाओं व उनके बजट पर बात रखी वही जितेन्द्र कुमार गौतम ने जलवायु परिवर्तन व आपदा न्यूनीकरण के बजट के बारे में बात रही की यह मुद्दा आज ब्यापक होता जा रहा है सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए और उसका बजट आवंटन भी दिखना चाहिए। रुकसाना मंसूरी ने मुस्लिम महिलाओं व मधु अनुरागी ने कहाँ दलित महिलाओं व लड़कियों के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए बजट व योजनायें बने ताकि सीधे तौर पर लाभ मिल सके।

स्टूडेंट लीडर- सचिन कुमार, मणि, प्रदुम्न, अर्सना मंसूरी ने कहा की दलित स्टूडेंट को समय से स्कालरशिप नहीं मिलती वही बुंदेलखंड से कई हजार दलित युवा रोजगार की तलाश में पलायन करके दुसरे प्रदेशों में जाते है, आखिर कब सुधरेगी दलितों की हालात जिस प्रकार से बजट की कटोती की जा रही है वो सामाजिक से ज्यादा आर्थिक अत्याचार दलितों के साथ किया जा रहा है जिस पर सबकी चुप्पी बनी हुई है, कोविड ने सबसे ज्यादा स्टूडेंट की पढाई को प्रभवित किया है समय से स्कालरशिप न मिलना भी उनकी पढाई को प्रभवित करती है। 

हमारी माँग है-
1देश में अनुसूचित जाति घटक और अनुसूचित जनजाति घटक को कानून बनाया जाये 
2. इस वर्ष 2023-24 के बजट की धनराशी को जो दुसरे मदों में डायवर्जन की गई है उसे वापस किया जाये
3. दलितों के सीधे विकास के लिए योजनायें बने जाये जिससे दलितों का सीधा विकास हो व एससीपी./टीएसपी. गाईड लाइन का पूर्णतया अनुपालन किया जाये

इस दौरान बजट चर्चा में उपस्तिथि कुलदीप कुमार बौद्ध, रिहाना मंसूरी, जितेन्द्र गौतम, ज्योति यादव, मधु अनुरागी, रुकसाना मंसूरी, सचिन, प्रदुम्न, नंदकुमार बौद्ध आदि उपस्थित रहे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button