उत्तर प्रदेशजालौनटॉप हेडलाइंसबड़ी खबर

नगर पालिकाध्यक्ष पद पर अंतर्जातीय विवाह वालों की है चांदी

सभासदी पर भी लागू हो रहा है यही फार्मूला

कोंच (पीडी रिछारिया) कोंच पालिकाध्यक्ष पद पर हुए आरक्षण ने कइयों का सियासी गणित भले ही गड़बड़ा दिया हो लेकिन दूसरी लाइन वालों की पौ बारह जरूर हो गई है। कोंच पालिकाध्यक्ष पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित हुआ है सो अनारक्षित वर्ग के लोगों को इस लाइन से हटना पड़ा है और उनका स्थान लेने के लिए आरक्षित वर्ग सामने आ गया है। इस तरह का आरक्षण अंतर्जातीय विवाह वालों के लिए काफी मुफीद साबित होता रहा है जिसके चलते पिछले दो चुनावों में तो कमोवेश यही इबारत लिखी गई है जिनमें सवर्ण जातियों के पतियों की पिछड़ी और अनुसूचित जातियों की पत्नियों को पालिका अध्यक्ष की बागडोर कोंच की जनता सौंपती रही है। आरक्षित पद पर अनारक्षित का लाभ मिलने से नामुमकिन भी मुमकिन होता रहा है।

जब तक कोंच पालिकाध्यक्ष पद पर आरक्षण घोषित नहीं हुआ था तब तक दर्जनों की संख्या में पालिकाध्यक्ष पद के संभावित उम्मीदवार नजर आ रहे थे, लेकिन आरक्षण की घोषणा होने के बाद अनारक्षित वर्ग के लोगों को अपने पैर वापस खींचने पड़े हैं। चूंकि कोंच पालिकाध्यक्ष पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित हुआ है सो पिछड़ी जातियों की महिला उम्मीदवारों को फ्रंटफुट पर आकर खेलने का मौका मिल गया है। हालांकि ऐसी महिलाओं के पीछे उनके परिवारों के पुरुष ही केंद्रीय भूमिका में हैं। इस तरह के आरक्षण की सबसे ज्यादा खुशी अंतर्जातीय विवाह वालों के खेमों में हुई है और उनमें बाकायदा गोले दागकर मिठाइयां बांटकर व फूल मालाएं पहनाकर जश्न मनाया गया है। उनका जश्न मनाना लाजिमी भी है क्योंकि पिछले कमोवेश दो चुनाव इस बात के गवाह हैं कि कोंच पालिकाध्यक्ष पद अंतर्जातीय विवाह वालों के लिए काफी मुफीद साबित हुए हैं। साल 2012 में हुए पालिका चुनाव में अध्यक्ष पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित था जिसमें ब्राह्मण जाति के विज्ञान विशारद सीरौठिया की पिछड़ा वर्ग से आने वाली पत्नी विनीता और वर्ष 2017 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस पद पर अनारक्षित वैश्य विरादरी के आनंद अग्रवाल की अनुसूचित जाति की पत्नी डॉ. सरिता वर्मा ने जीत हासिल की थी। इस बार फिर 2012 वाला आरक्षण रिपीट हुआ है सो विनीता खेमे में खासतौर पर जश्न का माहौल है। यहां बताना समीचीन होगा कि जिस तरह से विनीता खेमा 2012 दोहराने के प्रति आशान्वित है वह उतना आसान है नहीं क्योंकि समय के साथ तमाम चीजें बदल गई हैं। खासतौर पर जातीय समीकरण पहले के मुकाबले बदले हुए हैं क्योंकि इस बार के चुनाव पालिका क्षेत्र के सीमा विस्तार के साथ होने जा रहे हैं जिसमें कमोवेश पांच हजार नए वोटर जुड़े हैं। ऐसे में सियासी गणित क्या गुल खिलाएगा, कहना मुश्किल है। गौर करने वाली बात यह भी है कि अंतर्जातीय विवाह वाली स्थिति केवल अध्यक्ष पद पर ही लागू नहीं है बल्कि सभासदी में भी तमाम उम्मीदवार उभर कर सामने आ रहे हैं। सवर्ण समाज के ऐसे तमाम लोग हैं जिनकी पत्नियां ओबीसी या अनुसूचित जाति से हैं और वार्ड आरक्षण में वे इसका लाभ लेने के लिए सभी संभव हथकंडे अपना रहे हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button