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देख रेख के अभाव में अपने अस्तित्व को खोजते कालपी के सुप्रसिद्ध घाट

कालपी (ज्ञानेंद्र मिश्रा) धार्मिक महत्व की नगरी के रूप में पूरी दुनिया में अपनी अलौकिक पहचान बनाये व्यास नगरी कालपी में यमुना तट पर बने घाटों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। यहां के घाट एक-एक कर अपना अस्तित्व खोते जा रहे है।
इतिहास के पन्नों पर यदि नजर डाले तो कहने को तो लोग कालपी को बुन्देलखण्ड का प्रवेश द्वार के अलावा मर्हिष वेदव्यास की जन्मस्थली झांसी की रानी की रणस्थली विश्व के तीन सूर्य मन्दिरों में एक कालपी का सूर्य मन्दिर व उपकाशी प्राचीन लंका मीनार बीरबल का रंगमहल अंग्रेजों का कब्रिस्तान सहित कालपी शरीफ के रूप में पहचाने जाने वाली इसी नगरी से निकली पवित्र यमुना नदी अपनी प्राचीनतम कथा को बताती है। लेकिन अफसोस है कि इस नदी के किनारे स्थित यमुना घाट आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है। नगर के बीचोंबीच बने पीलाघाट की स्थिति अत्यंत खराब है यहा के घाट में बडे-बडे गढ्ढू व टूटी सीढ़ियाँ व उखड़ी पडी बड़ी बड़ी सिलाये अपना दर्द बया कर रही है। ऐसा नहीं कि घाट की मरम्मत नही करायी गयी। लेकिन भ्रष्टाचार के कारण लगाया हुआ पैसा बाढ़ के पानी मे बह गया। यही नहीं अभी हाल ही में पालिका द्वारा लाखों रूपये से बाई घाट में निर्माण कार्य कराया गया तथा वह भी पिछली बाढ़ में बह गया। इसके अलावा तरीबुल्दा स्थित ढोडेश्वर घाट का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। यहां 10 वर्ष पूर्व पालिका ने लाखों रुपये से नया स्नान घाट बनाया था आज वह भी अस्तित्व विहीन हो गया। नगर का एकमात्र घाट किलाघाट की स्थिति ठीक है लेकिन यहां यमुना की जल धारा चार माह के लिये घाट छोड़ देती है। लेकिन सबसे मजे की बात यह है कि सूबे में भाजपा की सरकार होने के बाद घाटों की इतनी दयनीय स्थिति के लिये आखिर कौन जिम्मेदार है। यह एक सोचनीय विषय है।

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