जगतगुरु स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज का अटूट रिश्ता रहा है कालपी से….!

कालपी (ज्ञानेंद्र मिश्रा) महर्षि वेदव्यास की जन्मस्थली कालपी में होने के चलते अपनी बाल्या अवस्था से ही जगतगुरु स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज का अटूट रिश्ता कालपी से था तथा कई वर्षों तक उन्हें यमुना तट स्थित बिहारी जी घाट के ऊपर बनी कोठरी में रहकर साधना की। उनके शिष्य व अनुयायी उनके संस्मरण सुनाते नही थकते।
द्वारिका पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज जोकि 99 वर्ष की आयु में अपने शरीर को शान्त किया। स्वामी स्वरूपा नन्द जी का कालपी से अटूट रिश्ते की जब हमने पडताल की तो मालूम हुआ कि इस देश में जो सन्त हुये उन्होंने भगवान वेद व्यास को अपना आदि गुरु माना है यही कारण था कि वह बाल्या अवस्था से ही कालपी के वह सम्पर्क में आये तथा पवित्र यमुना तट स्थित बिहारी जी घाट के ऊपर बनी कोठरी में कई वर्षों तक तपस्या की। आज से तकरीबन 5 दशक पूर्व उन्होंने एक बार श्री ढोडेश्वर मन्दिर में तथा किलाघाट स्थिति पातालेश्वर मन्दिर में आयोजित हुये यज्ञ में दण्डी स्वामी के रूप में उपस्थित रहे। बताया जाता है कि पातालेश्वर मन्दिर में आयोजित हुये यज्ञ में चारों जगत गुरु शंकराचार्य आये हुये थे। आज उनके सबसे वृद्ध शिष्य बाल किशन तिवारी ललुउआ महाराज निवासी रावगंज अपने गुरु के निधन से अशुपूरित नजर आये। वही कालपी के टरननगंज निवासी जगदीश गुप्ता ने बताया की सदर बाजार निवासी कैलाश नाथ द्विवेदी की बजह से महाराज जी का जन्मोत्सव भादो की तीजा को होता था उन्हें मध्य प्रदेश दिहोरी, बनारस, कलकत्ता, हरिद्वार में शामिल होने का अवसर मिला तथा दिहोरी में ज्योर्तिलिंग की स्थापना के दौरान 10 दिनों तक रहने का अवसर मिला तथा वह द्वारिकापुरी सहित कई जगहों पर उनके कार्यक्रम में शामिल रहे। वही पडित योगेन्द्र नारायण शुक्ला वैध जी के मुताबिक स्वामी स्वरूपा नन्द जी महाराज उनके पिता राजवैध पडित तुलसीराम शुक्ल वैध जी से अटूट प्रेम करते थे तथा अक्सर वह उनके औषधिलय आते थे। इसके अलावा रामदास गुप्ता, भगवान दास गुप्ता, गोपाल तिवारी रावगंज, सीताराम तिवारी, लक्ष्मी नारायण विश्नोई चक्की वाले, श्याम बाबू पुरवार, विश्वनाथ पुरवार, चन्द्रभानू विधार्थी, बाबू गुप्ता, कनौडिया जी सहित बडी़ सख्यां में उनके शिष्य व अनुयायी यहा आज भी मौजूद है। क्योकि स्वामी स्वरूपा नन्द जी महाराज करपात्री जी महाराज के शिष्य से तथा करपात्री जी महाराज का व्यास नगरी से विशेष लगाव रहा है। यहां के लोगों की माने तो सनातन धर्म की पताका को लहराने वाले एक परम तपस्वी संत के शान्त होने से अपूणनीय क्षति हुई है। जिसकी भरपायी सम्भव नही है।