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रोजी कमाने के लिए गए प्रवासियों का नहीं आना भी एक बड़ा कारण रहा कम मतदान प्रतिशत के लिए

कोंच (पीडी रिछारिया) हालिया निपटे विधानसभा चुनाव के मतदान में माधौगढ-कोंच और उरई सदर विधानसभा क्षेत्रों में लगने वाले इलाकों के अधिकांश युवा अपने बाल बच्चों के साथ रोजी कमाने के चक्कर में परदेश में पड़े हैं जिसका अच्छा खासा असर वोटिंग प्रतिशत पर पड़ा है। गांवों में हालत यह है कि हर पांचवां घर ऐसा है जिसमें बूढे मां-बाप या इक्का दुक्का सदस्य ही घरों में हैं, इन घरों के युवा रोजी कमाने के लिये देश के अन्य प्रांतों में अपने परिवारों के साथ डेरा डाले हैं जिसके चलते उन्हें चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं रही। कई घर ऐसे भी दिखाई दिए जहां ताले लटके हैं, यानी एक तरह से पलायन की स्थिति ने वोटिंग प्रतिशत का सारा गणित बिगाड़ कर रख दिया है। एक अनुमान के मुताबिक तहसील क्षेत्र से लगभग पच्चीस से तीस हजार मतदाता बाहर हैं, इनमें से ज्यादातर निचले तबके के लोग हैं।

कोंच तहसील क्षेत्र के विकास खंड नदीगांव का लगभग पूरा इलाका माधौगढ-कोंच विधानसभा क्षेत्र में लगता है। इस इलाके का पश्चिमी क्षेत्र बीहड़ का है जहां रोजी के साधन बिल्कुल भी नहीं हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं भी इन इलाकों के बाशिंदों के लिये ‘चंदा मामा दूर के’ हैं। पेट की आग बुझाने के लिए इन खजुरी, खजुरी डांग, अर्जुनपुरा, भखरौल, कैमरा, सींगपुरा, अनघौरा, परावर की मड़ैंयां, सलैया, महेशपुरा, देवगांव, घमूरी, जगनपुरा, परासनी, रूपपुरा आदि इलाकों में तमाम घर ऐसे हैं जहां ताले लटके दिखाई दे रहे हैं। ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि इन घरों के लोग बाहर हैं और मतदान के लिए भी वह लोग नहीं आए थे। कारण भी बिल्कुल साफ है कि आने जाने में दो चार दिन टूटते और दस पचीस हजार से निपट भी जाते, जबकि एक एक पाई इनके लिए मायने रखते हैं।

विकास खंड कोंच के भी वह इलाके जो माधौगढ-कोंच विधानसभा के अलावा उरई (सु) विधानसभा क्षेत्र में लगते हैं, कमतरी, भेंपता, बसोव, चांदनी, सुनायां, नरी, पहाड़गांव, कौशलपुर, जमरोही, पिरौना, भरसूंड़ा, विरगुवां खुर्द, चमारी आदि में भी पलायन की यही स्थिति है। ऐसे घरों की संख्या भी हजारों में है जिनमें केवल बूढे मां-बाप और एकाध नाबालिग ही मौजूद हैं, उनके कमाने लायक सदस्य गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान यहां तक कि दक्षिण पश्चिम के राज्यों जैसे तमिलनाडु, आंध्रा, बैंगलुरू से लेकर मुंबई तक में आशियाने डाले रोजगार कमा रहे हैं। मां-बाप के खर्च के लिए वह समय से पैसा भेजते रहते हैं। ऐसे लोग साल में एक या दो बार ही त्यौहारों के मौकों पर आ पाते हैं, मतदान उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हैं। गांवों का यही पलायन पिछले कई चुनावों की तरह इस चुनाव में भी कम मतदान होने का एक बड़ा कारण बन कर उभरा है।

कोंच तहसील में 278 गांव हैं जिसमें 202 आबाद और 76 गैर आबाद हैं। इनकी मतदाता संख्या 2 लाख 29 हजार 802 है जिसमें माधौगढ-कोंच विधान सभा में 1 लाख 85 हजार 463 तथा उरई विधानसभा में 44 हजार 339 है। इन गांवों में सर्वेक्षण करने के दौरान मोटे तौर पर जो जानकारी मिली है उसके अनुसार बड़ी आबादी वाले गांवों से औसतन सैकड़ा भर और छोटे गांवों से आधा सैकड़ा लोग अपना आशियाना परदेश में ताने हैं। कोंच पालिका क्षेत्र और नदीगांव टाउन एरिया में भी कमोवेश यही स्थिति है। कोंच नगर और नदीगांव टाउन एरिया सहित ग्रामीण क्षेत्रों के प्रवासियों की यह संख्या लगभग पच्चीस से तीस हजार के बीच हो सकती है। ऐसे में मतदान का प्रतिशत अगर 60 फीसदी से नीचे आया है तो हैरानी की कोई बात नहीं है।

वहीं ग्राम सभा घुसिया-महंतनगर के रहने वाले प्रमोद कुशवाहा बताते हैं कि यहां ज्यादातर मजदूर हैं और गांव में काम नहीं मिलने के कारण रोजी कमाने के लिए परदेश जाना लोगों की मजबूरी है। श्रीचंद्र अहिरवार के घर में पांच सदस्य हैं और सभी गुजरात मे धंधा पानी के लिए गए हैं, घर में ताला लटका हैं। दीपावली को त्यौहार करने के लिए आए थे। अरविंद कुशवाहा के घर के भी सारे लोग बाहर रह कर रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं।

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