– छात्रों के लिए 76 वर्ष पुरानी पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना बंद होने के कगार पर : भानु प्रिया उरई/जालौन। छात्रवृत्ति के बजट में लगातार की जा रही कटौती के ख़िलाफ़ बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच व दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन एनसीडीएचआर द्वारा गणेश धाम उरई में एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया। जिसमे केंद्र सरकार द्वारा देश के छात्रों खासकर दलित व वंचित समुदाय के स्टूडेंट्स के स्कालरशिप के बजट की लगातार की जा कटौती के खिलाफ़ आवाज उठाई। प्रेस वार्ता में दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन दिल्ली से आई रिसर्चर भानु प्रिया एवं बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के संयोजक कुलदीप कुमार बौद्ध एवं रिहाना मंसूरी एवं स्टूडेंट लीडरों ने संबोधन किया व सवाल उठए एवं मीडिया के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री को भेजे जाने वाले 7 सूत्रीय मांग पत्र को रखा एवं छात्रवृत्ति को लेकर सरकार के द्वारा किये जा रहे षड़यंत्र को उजागर किया।
हाल ही में मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पता चला है कि मोदी सरकार देश भर में 62 लाख गरीब SC & ST छात्रों को लाभ देने वाली 76 वर्ष पुरानी “पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति (PMS) योजना” को बंद करने जा रही है। केंद्रीय सरकार की यह योजना बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र सहित 14 से अधिक राज्यों में लगभग बंद हो गई है और 2017 के एक फार्मूले के तहत राज्यों को धन जारी नहीं कर रही है। हालांकि रिपोर्ट से पता चलता है कि केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए पी.एम.एस योजना के तहत फंडिंग पैटर्न के संशोधन के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिसके अनुसार केंद्र और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के बीच “कमिटिड लायबिलिटी” की बजाय “फिक्स्ड शेयरिंग रेशिओ” का नियम लागू होगा। एम.एस.जे.ई., भारत सरकार के माननीय राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने भी 16 जुलाई 2019 को संसद के प्रश्न संख्या -3,.862 की अपनी प्रतिक्रिया में यही बात कही। शेयरिंग रेशिओ की शिफ्टिंग पी.एम.एस योजना को लागू करने की आर्थिक ज़िम्मेदारी राज्य के संसाधनों पर डाल देगी।
मीडिया रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि, हाल ही में पीएमओ की बैठक “कमिटिड लायबिलिटी” के 2017-18 के युग की समाप्ति के साथ हुई, जिसके परिणामस्वरूप 2018 में केवल 10% केंद्रीय हिस्सेदारी और 90% राज्य के शेयर थे। 12वें वित्त आयोग (एफ.सी) के दौरान, प्रतिबद्ध देयता (कमिटिड लायबिलिटी) 60% केंद्रीय हिस्सा और 40% राज्य का हिस्सा थी। इस 12वें एफ.सी के दौरान, कुल केंद्रीय हिस्सा (10%) और राज्य का हिस्सा (90%) था, लेकिन 14 वीं एफसी अवधि में यह केंद्रीय हिस्सा काफी कम हो गया (10%) और राज्य का हिस्सा (90%)।
अब राज्यों के लिए स्वयं के संसाधनों से 90% वित्त का प्रबंधन कर छात्रवृत्ति की प्रतिपूर्ति करना सबसे बड़ी बाधा बन गया है है, साथ ही उन्होंने पहले ही योजनाओं को लागू करने में असमर्थता व्यक्त की है। कई राज्य सरकार जैसे पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार बार-बार इस मुद्दे को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, के पास ले जा चुके हैं। इसलिए, हम यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल आधार पर मांग करते हैं कि संवैधानिक गारंटी के तहत देश के 62 लाख से अधिक गरीब SC & ST छात्रों को शैक्षिक न्याय मिले।
हमारी मांगें : –
👉 केंद्र को तुरंत आवश्यक धनराशि आवंटित करने और 62 लाख एससी / एसटी छात्रों को तुरंत लाभान्वित करने के लिए पीएमएस योजना को जारी रखने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की जाए।
👉 “प्रतिबद्ध दायित्व (कमिटिड लायबिलिटी)” प्रणाली को समाप्त किया जाए, और केंद्र और राज्य के बीच 60:40 की हिस्सेदारी को तत्काल प्रभाव से पी.एम.एस योजना के लिए लागू किया जाए।
👉 62 लाख अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों को उचित छात्रवृत्ति सुनिश्चित करने के लिए सभी पात्र छात्रों की पी.एम.एस की मांग को पूरा करने के लिए प्रति वर्ष केंद्रीय आवंटन को बढ़ाकर 10,000 करोड़ रुपये किया जाए।
👉 सभी पात्र छात्र हर शैक्षणिक वर्ष के अंत में अपनी उचित छात्रवृत्ति प्राप्त करें यह सुनिश्चित करने के लिए समयबद्ध शिकायत प्रणाली हो, जो कि अस्वीकार किए गए पी.एम.एस आवेदन और विलंभित प्रतिपूर्ति जैसी छात्रों की समस्याओं का हल निकाले।
👉 सभी SC / ST छात्रों के लिए वर्तमान 2.5 लाख की बजाय आय की पात्रता मानदंड को बढ़ाकर 8 लाख किया जाए।
👉 सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को सी.पी.आई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) और मौजूदा मुद्रास्फीति के आधार पर मासिक पीएमएस राशि की इकाई को बढ़ाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शिक्षा के खर्चों की उभरती जरूरत ठीक से पूरी हो।
👉 सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MSJE) और MOTA (जनजातीय मामलों का मंत्रालय), भारत सरकार, एक बेहतर निगरानी प्रणाली स्थापित करें और यह सुनिश्चित करें कि राज्य सरकार की माँगों को समय पर सुना जाए और उनके खाते में धनराशि जारी की जाए।
इस दौरान भानु प्रिया रिसर्चर, रिहाना मंसूरी, कुलदीप कुमार बौद्ध संयोजक बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, स्टूडेंट लीडर नंद कुमार बौद्ध, सचिन चौधरी, अर्सना मंसूरी मणि प्रजापति, प्रीती बौद्ध, दीक्षा, कीर्ति, कंचन वर्मा, आशीष कुमार, रामसिंह, प्रदुम्म, सुरजीत, पंचम सिंह, ओमेन्द्र सिंह आदि मौजूद रहे।