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कोविड के भयानक खतरों को नहीं समझ रही है बाजारों में उमड़ती भीड़

कोंच। कोरोना महामारी हर रोज अपने नुकीले पंजों को और पैंना करके अपनी मारक क्षमता बढाती जा रही है लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी इसके खतरों से बेपरवाह अपने उसी पुराने ढर्रे पर चलती जा रही है। इसी का परिणाम है कि अब कोरोना हर गली मोहल्ले में अपने पैर जमाता जा रहा है। प्रशासन की अगर बात करें तो उसे इस तरह की बनती जा रही स्थितियों से कोई खास फर्क नहीं पड़ता दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है जैसे प्रशासन ने जनता को जनता के ही भरोसे छोड़ दिया है लेकिन जनता इस बात को समझ नहीं पा रही है या फिर समझने की कोशिश नहीं कर रही है।
बाजारों की रौनक पहले लॉकडाउन के अनलॉक होने के बाद ऐसे लौटी है जैसे पिछले साल कुछ हुआ ही नहीं हो। कस्बे से लेकर गांवों के बाजार पूरी तरह गुलजार हैं। बाजारों में उमड़ रही बेतहाशा भीड़ में कोरोना का थोड़ा सा भी डर नहीं दिखाई दे रहा है। भीड़ का आलम यह है कि एक दूसरे के ऊपर चढे जा रहे हैं लोग। ऐसे में सामाजिक दूरी की उम्मीद करना ही बेमानी है। बाजारों में घूम रही यह भीड़ डराने बाली है क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग नहीं होने से संक्रमण का खतरा कई गुना अधिक बढा है। कइयों के मुंह पर तो मास्क तक नहीं है। अधिकांश दुकानदार भी बिना मास्क के ग्राहकी निपटा रहे हैं। इन भयभीत करने बाली स्थितियों से प्रशासन पूरी तरह से बेखबर है। शासन ने आम जिंदगी में आम आदमी के लिए कई तरह की गाइडलाइंस जारी कर रखीं हैं लेकिन वे कागजी साबित हो कर रह गई हैं। प्रशासन की इस सुस्ती से जनता उच्छृंखल हो गई है और कोविड गाइडलाइंस उसके ऊपर बेअसर हैं। प्रशासन ने जनता को उसी के भरोसे छोड़ रखा है। शायद प्रशासन समझ रहा है कि बर्ष 2020 के लॉकडाउन को जनता ने ट्यूशन समझ कर बहुत कुछ सीख लिया होगा और अब उस ज्ञान का उपयोग आसन्न आपदा में अपनी और अपनों की जान बचाने में करेगा लेकिन उसे नहीं मालूम कि जनता उस अर्जित ज्ञान को कभी का भूल अपनी रफ्तार से आगे बढ चुकी है। यहां ‘भय बिन होए न प्रीति’ का सूत्र अपना कर ही कोविड की भयावहता पर अंकुश लगाया जा सकता है।

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