रामलला मंदिर में झूला महोत्सव के सप्तम दिवस राग रागिनियों ने बढाईं पींगे, पक्के संगीत पर झूमे श्रोता

कोंच (पी.डी. रिछारिया)। प्राचीन रामलला मंदिर में पखवाड़े भर चलने बाले झूला महोत्सव के सातवें दिन राग रागिनियों ने खूब पींगें बढाईं और पक्के संगीत पर श्रोता मस्ती में झूमे। स्वातंत्र्य समर के प्रमुख केंद्र रहे रानी लक्ष्मीबाई के गुरुद्वारे रामलला मंदिर में महंत रघुनाथ दास के सानिध्य में जारी झूला महोत्सव में सप्तम दिवस का झूला संगीत के जानेमाने हस्ताक्षर ग्यासीलाल याज्ञिक द्वारा प्रस्तुत वाणी वंदना ‘मां शारदे वरदान दे, मुझको नवल उत्थान दे’ से प्रारंभ हुआ।
उन्होंने राग पूर्वी तीन ताल में प्रस्तुति दी, ‘काजर कारे अति सुखवारे लागत प्यारे नैन तुम्हारे’। कुमारी रिया कुशवाहा ने राग यमन तीन ताल में प्रस्तुति दी, ‘जबसे पिया परदेश गमन कीन्हो, रतियां कटत मोहे तारे गिन गिन’। कुमारी देवयानी ने राग अड़ाना तीन ताल में गाया, ‘जगतपति ऐसी तान कहावै, जो जानें सो गुनी कहावै’। कुमारी शीतलसिंह बुंदेला ने ‘हिंडोला कुंज बिच डारौ री, झूलन आई राधिका प्यारी’ गाकर खूब वाहवाही लूटी। सृष्टि वर्मा ने ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ की बहुत ही शानदार प्रस्तुति देकर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। नागा मोहनदास महाराज ने गाया, ‘तेरी रसभरी मुरली मिरे मन को लुभाती है, वो मुरली याद आती है’। पूजा मिश्रा ने झूला सुनाया, ‘झूला झूल रहीं सीता रघुनाथ संग में’। सरोज मिश्रा ने गाया, ‘लगन हरि से लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा’। संध्या कुशवाहा ने झूला गाया, ‘झूल रहे सरकार हिंडोला डरे कदम की डार’। आशाराम मिश्रा ने प्रस्तुति दी, ‘हे मुरलीधर छलिया मोहन हम तुमको दिल दे बैठे’। हरफनमौला रंगकर्मी वीरेंद्र त्रिपाठी ने पुष्प वाटिका में राम सिया के प्रथम मिलन की सुंदर झांकी के दर्शन कराते हुए गाया, ‘देखकर रामजी को जनकनंदिनी बाग में फिर खड़ी की खड़ी रह गई’। आकाश राठौर की प्रस्तुति ‘जीवन गुजर गया तब जीने का ढंग आया तथा बुद्धसिंह बुंदेला के झूला ‘रंगीले तेरी झूलन है अति प्यारी’ पर खूब तालियां बजीं। संचालन रामकृष्ण सिंह परिहार ने किया। तबले पर महेश कुमार और हारमोनियम पर रामप्रकाश संगत कर रहे थे। अंत में पुजारी गोविंददास ने रामलला सरकार की आरती उतारी।