नरक चतुर्दशी के दिन चतुर्मुखी दीप का दान करने से नरक भय से मुक्ति मिलती है : विष्णुकांत

कोंच (पी.डी. रिछारिया) पांच चरणों में मनाए जाने वाले दीपावली पर्व के प्रत्येक चरण का अपना महत्व है। दूसरा चरण नरक चतुर्दशी को मनाया जाता है। भागवताचार्य पं. विष्णुकांत मिश्रा शास्त्री का कहना है कि नरक चतुर्दशी के दिन चतुर्मुखी दीप का दान करने से नरक भय से मुक्ति मिलती है। एक चार मुख (चार लौ) वाला दीप जलाकर इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए,
”दत्तो दीपश्वचतुर्देश्यां नरकप्रीतये मया। चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापापनुत्तये॥“
अर्थात नरक चतुर्दशी के दिन नरक के अभिमानी देवता की प्रसन्नता के लिए तथा समस्त पापों के विनाश के लिये मैं चार बत्तियों वाला चौमुखा दीप अर्पित करता हूं। यद्यपि कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए, फिर भी नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल-मालिश (तैलाभ्यंग) करके स्नान करने का विधान है। ‘सन्नतकुमार संहिता’ एवं धर्मसिंधु ग्रंथ के अनुसार इससे नारकीय यातनाओं से रक्षा होती है। जो इस दिन सूर्योदय के बाद स्नान करता है उसके शुभकर्मों का नाश हो जाता है। इसे काली चौदस भी कहा जाता है। काली चौदस और दीपावली की रात जप-तप के लिए बहुत उत्तम मुहूर्त माना गया है। नरक चतुर्दशी की रात्रि में मंत्रजप करने से मंत्र सिद्ध होता है। इस रात्रि में सरसों के तेल अथवा घी के दीये से काजल बनाना चाहिए। इस काजल को आंखों में आंजने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती तथा आंखों का तेज बढ़ता है।