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कोरोना काल में देशी फ्रीज की बिक्री पर भी पड़ा असर

जालौन। गर्मी अब पूरे शबाब पर आ गई है। एेसे में लोंगो को शीतल पेयजल की आवश्यकता काफी होती है लेकिन कोरोना संक्रमण का खतरा अधिक होने के कारण लोग फिलहाल ठंडे पानी से बचते नजर आ रहे हैं। इस कारण कुम्हारों द्वारा तैयार किए जाने वाले देशी फ्रीज (मटका) की बिक्री न के बराबर हो गई है जिससे इस श्रेणी के लोग परेशान हैं। उन्होंने अपनी पीड़ा साझा की है।
औरेखी निवासी महेश प्रजापति ने बताया कि उनका पुस्तैनी धंधा मिट्टी का बर्तन बनाकर बेचना है। इस कारण वे मौसम व त्यौहार को देखते हुए मिट्टी के बर्तन तैयार करते हैं। इन तैयार मिट्टी के बर्तनों को बेचकर जो आमदनी होती है उसी से अपने घर व परिवार का पालन पोषण करते है। बीते साल कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन लगने से धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया। दुर्गा पूजा में भी मूर्तियों आदि की बिक्री नहीं हुई। दीपावली में भी दीए की बिक्री अनुमान के मुताबिक नहीं हुई जिससे काफी परेशानी हुई। नवंबर दिसंबर में जब लाकडाउन में छूट मिली तो अपना कार्य तेज कर दिया था जबकि इस महंगाई के समय में मटका बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली मिट्टी की ट्राली व उसे पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाली लकड़ी आदि सभी महंगी हो गई है। महंगाई बढऩे से मटका बनाने की लागत भी बढ़ी है जिसके चलते उन्होंने कुछ कर्ज भी ले लिया था। वहीं अल्लू प्रजापति व अशर्फीलाल प्रजापति ने बताया कि उम्मीद थी कि गर्मियों में मटके की अच्छी बिक्री होगी। उन्होंने बड़ी मात्रा में मटका का निर्माण किया है लेकिन अब कोरोना की दूसरी लहर महामारी बनकर लौटी है। लोग ठंडा पानी पीने से परहेज कर रहे हैं। ऐसे में मटके की बिक्री पर भी असर हुआ है। गांव ही नहीं बल्कि जालौन और उरई के व्यापारी भी थोक में मटका खरीदकर ले जाते थे लेकिन इस बार कोरोना कफ्र्यू और लोगों के ठंडे पानी से परहेज के कारण मटके की बिक्री न के बराबर हो रही है। पहले तो कुछ लोग घूम घूम हाट और बाजारों में मटका बेच लेते थे लेकिन अब हाट और बाजार बंद होने से बिक्री लगभग खत्म हो गई है। अब लग रहा है कि उनका पैसा फंस गया है। साथ ही कर्ज वापसी की चिंता भी सता रही है।

 

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