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चुनौती पूर्ण कैरियर है पत्रकारिता का : विकास त्रिवेदी

फतेहपुरपत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ती भीड़-भाड़ एवं उन सबके बीच अपने आप को स्थापित करना अब चुनौती पूर्ण बनता जा रहा है। जैसे-जैसे सोशल मीडिया ने अपने कदम आगे बढ़ाए वैसे-वैसे अब पत्रकारिता की दिशा ही बदलती जा रही है। कभी बड़े एवं छोटे बैनर की गहरी खाई के बीच अपने आप को स्थापित करने के लिए एक सच्चे कलमकार को अपनी लेखनी के जरिए ही पहचान बनानी पड़ती थी और अगर वह सही मायने में लेखन का मजबूत व्यक्ति था तो उसे कहीं न कहीं आसानी से मुकाम भी हासिल हो जाता था।

किंतु सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने आज कलम को कमजोर कर दिया है और अब वह दौर शुरू हो चुका है जहां पर कुछ भी कलम से लिखने की जरूरत नहीं, अब सब कुछ मोबाइल पर निर्भर है! आधुनिकता की चकाचौंध में कभी देश-दुनिया की खबरों को जानने का माध्यम प्रिंट मीडिया होती थी, उसके बाद रेडियो का युग शुरू हुआ और घर-घर रेडियो दिखने लगे। उसके बाद टेलीविजन ने अपने पैर पसारे और कुछ समय के बाद ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का चलन तेजी के साथ बढ़ा, किंतु आज एंड्रॉयड मोबाइल फोन के चलन के साथ ही हर हाथ में फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम समेत अन्य सोशल मीडिया एप चलन में आए और इसका सीधा असर प्रिंट मीडिया पर देखने को मिला।

आज अगर देखा जाए तो बड़े-बड़े सर्कुलेटेड अखबार भी बढ़ती जनसंख्या के बावजूद अपने पाठक नहीं बढ़ा पा रहे और उनका सरकुलेशन भी दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। ऐसे में छोटे एवं मझोले किस्म के अखबार सिर्फ ज्यादातर पीडीएफ पर ही निर्भर हो चुके हैं और उसी के जरिए अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। इन सबके बीच सबसे सोचनीय बात यह है कि उस पीडीएफ को फॉरवर्ड करने की व्यवस्था भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए ही पूरी की जाती है। सोशल मीडिया के बढ़ते चलन ने सिर्फ प्रिंट मीडिया को ही चुनौती नहीं दी, बल्कि इससे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी प्रभावित हुई है।

बड़े-बड़े इलेक्ट्रॉनिक चैनल आज सोशल मीडिया के जरिए अपनी खबरों को जनता के बीच पहुंचाने का मजबूत माध्यम मानते हैं। कुल मिलाकर अब यह भी आप कह सकते हैं कि जिसके हाथ में एंड्रॉयड फोन वह बन सकता है पत्रकार! सोशल मीडिया के जरिए छोटी-बड़ी खबरें आसानी से लोगों तक पहुंचती है जिसकी वजह से पत्रकारिता चुनौती पूर्ण बन चुकी है! अब इन सबके बीच अपने आपको कलम के जरिए स्थापित करना बहुत कठिन बनता जा रहा है। हालांकि मैं एक बात जरुर कहना चाहूंगा जहां इसके जरिये कुछ नुकसान हुआ है तो वहीं छोटे एवं मझोले प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों को अपनी मजबूत लेखनी व भाषा शैली के जरिए पहचान भी हासिल हुई है, किंतु अपनी अलग पहचान कायम रखना इस दौर में चुनौती से कम नहीं।

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