श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में नगर के प्राचीन मंदिरों को दुल्हन की तरह सजाया गया

जालौन (ब्रजेश उदैनियाँ) मिनी वृंदावन के नाम से मशहूर नगर मे आज भी श्रीकृष्ण भक्ति धारा बह रही है। यहां आज भी सबसे ज्यादा राधा कृष्ण मंदिर बने है। नगर मे श्री कृष्ण भक्ति की धारा कब बही इसकी कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नही है। लेकिन नगर में राधाकृष्ण मन्दिर की संख्या ज्यादा होने से यह प्रतीत होता है कि आज भी नगर मे श्री कृष्ण की भक्ति धारा बह रही है।
जैसे बम्बई वाला मन्दिर, गोविंदेश्वर, द्वारिकाधीश, चौधरयाना स्थित राधाकृष्ण मन्दिर, पक्के तालाब स्थित राधा कृष्ण, लालजी दास महंत मन्दिर इसी प्रभाव को साबित कर रहे हैं। इक्का दुक्का मंदिरो को छोड़ दे तो नगर में रामजानकी के मंदिरो का अभाव ही यहां पर दिखता है। राधाकृष्ण मन्दिर जो नगर क्षेत्र में बम्बई वाले मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व की गई थी। इसके बाद भी यह मंदिर आज भी नए जैसा दिखता है। इस मन्दिर का निर्माण सेठ पुरुषोत्तम दास बैठगंज वालों ने अपने पुत्र प्राप्त होने की कामना पूर्ण होने पर करवाया था। सेठ पुरुषोत्तम दास मुम्बई में व्यापार करते थे। जब वह पांच दशक की उम्र पार कर चुके तथा खूब धन कमा चुके थे किन्तु उनके कोई सन्तान नही थी। सन्तान की तलाश में उन्होंने कई मंदिरो और दरगाहो में माथा टेका पर उन्हें सन्तान प्राप्त नही हुई थी। इसी दौरान उनकी एक साधु से भेंट हो गई तथा उन्ही की प्रेरणा से उन्होंने मन्दिर का निर्माण शुरु कराया जिसके बाद उन्हें सन्तान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह प्राचीन मन्दिर गुम्मदाकार होने के कारण बाहर से किसी राजा के महल जैसा प्रतीत होता है। सेठ पुरुषोत्तमदास ने एक कामतानाथ का भी मन्दिर बनवाया था। इस मन्दिर के पुजारी विनोद कुमार के अनुसार पूरे क्षेत्र में कामतानाथ का मन्दिर मिलना मुश्किल है। इस मंदिर में दर्शन करने से कई लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हुई हैं जिसके कारण आज भी कई सैकड़ों भक्त मन्दिर में दर्शन करने आते हैं। सेठ पुरुषोत्तम दास की तरह ही उनके पुत्र नरोत्तम दास भी अपने पिता की तरह ही धार्मिक प्रवृत्ति रखी।
इस प्रकार के मंदिर नगर में कृष्ण भक्ति की धारा को और मजबूत कर रहे है।एक और प्राचीन मन्दिर जिसे द्वारिकाधीश मन्दिर के भी नाम से जाना जाता है। जिसकी स्थापना 1880 में सेठ शिव चतुर्भुज दास महेश्वरी ने कराई थी जो नगर का सबसे प्राचीन द्वारकाधीश मन्दिर है। धार्मिक प्रवृति के होने के नाते सेठ चतुर्भुज दास ने नगर में भैरव नाथ का मन्दिर, छोटी माता तथा बड़ी माता मन्दिर की भी स्थापना कराई थी। पुजारी का दायित्व श्यामबाबू औदीच निभा रहे हैं जो प्रतिदिन पान का वीरा चढ़ाते हैं तथा प्रसाद वितरित किया जाता है ।