बलिया की बलशाली जमीन में राजनैतिक कोहिनूर की तरह पैदा हुए चंद्रशेखर : एड० गोविंद चौहान

आजाद शक्ति सेवा संगठन के संस्थापक अध्यक्ष एडवोकेट गोविंद चौहान ने भारत देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर जी की जयंती पर उनके श्री चरणों को सादर श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए कहा कि बलिया की बलशाली जमीन में राजनैतिक कोहिनूर के रूप में पैदा होने वाले चंद्रशेखर ने सदा से चले आ रहे इस मिथक को तोड़ने का साहसिक कार्य किया जिसमें लोगों को लगता था की जनता जनार्दन के लिए दिल्ली दूर है बलिया की क्रांतिकारी जमीन बलिया के हवा पानी में है आजादी के समय से ही अभूतपूर्व प्रतिभा शक्ति रही जिसने आजादी के बाद भी बागी बलिया के बगावती तेवरों को जिंदा रखने का और अधिक मजबूत करने का कार्य किया मंगल पांडे के बाद यदि बलिया में दिल्ली की कुर्सी के खिलाफ कोई आवाज बुलंद करने वाला था तो वह थे बागी बलिया के बाबू साहेब देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर सिंह।
चंद्रशेखर जी का जन्म 17 जुलाई 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिम पत्ती गांव के एक राजपूत किसान परिवार में हुआ था इनकी मृत्यु 8 जुलाई 2007 को हुई।
भारतीय राजनीति के बदले हुए परिवेश में बहुत कम राजनेता ऐसे होते हैं जिन्हें देश की राज्य की समस्याओं की जानकारी हो और वह उसके लिए समाधान खोजने का प्रयास करें और काफी हद तक उसमें सफलता प्राप्त करें इसकी समझ चंद्रशेखर जी के अंदर बखूबी थी वह भारत के आठवें प्रधानमंत्री रहे बाबू साहब युवा तुर्क चंद्रशेखर जी चाहे अल्प समय के लिए ही देश के प्रधानमंत्री रहे हो लेकिन उनके कार्यकाल ने पूरे देश ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी वाकपटुता हाजिर जवाबी और विभाग की को पहुंचाने का काम किया युवा तुर्क चंद्रशेखर ने अपने प्रारंभिक शिक्षण काल से ही अपनी चौमुखी प्रतिभाओं से समाज को प्रभावित करने का कार्य किया अध्ययन में चंद्रशेखर जी की विशेष रूचि थी।
राजनीति में चंद्रशेखर जी की दिलचस्पी छात्र जीवन से ही थी क्योंकि उस वक्त देश प्रेम ही जीवन था हर व्यक्ति अपने को देश की अस्मिता की रक्षा के लिए न्योछावर करने के लिए तैयार सा घूमा करता था उनके जीवन काल से लेकर अब तक वह युवाओं के लिए प्रेरणा की प्रतिमूर्ति रहे हैं युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर जी ने युवाओं को जगाने का कार्य किया उनका कहना था कि युवाओं की शक्ति को देश की शक्ति समझने वाला ही देश को एक नई दिशा देकर स्वास्थ्य प्रगति की तरफ बढ़ाता है क्योंकि युवाओं में निजी स्वार्थ के बजाय राष्ट्रहित का भाव होता है।
भारतीय राजनीति में समाजवादी आंदोलनों से निकली इकलौती ऐसी शख्सियत थे चंद्रशेखर जी जो 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत देश के प्रधानमंत्री रहे।
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्मे है बगावती तेवरों के लिए जाने जाने वाले अपने आदर्शों पर सदैव अडिग रहने वाले चंद्रशेखर जी से जुड़ा एक और रोचक तथ्य यह भी है कि प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके पास मुख्यमंत्री का पद कौन कहे किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद संभालने का कोई अनुभव नहीं था अलबत्ता वह 1977 से लेकर 1988 तक जनता पार्टी के अध्यक्ष अवश्य रहे।
जनमानस की मूलभूत समस्याओं की तलाश और उनके निस्तारण और निवारण के रास्तों को खोजने के लिए उन्होंने भारतीय राजनीतिक इतिहास में अब तक जो किसी राजनेता ने नहीं किया वह कार्य करने का काम किया उन्होंने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक भारत यात्रा की जोकि 4260 किलोमीटर की मैराथन यात्रा रही और ऐसा करने वाले अब तक के राजनीतिक इतिहास के वह इकलौते राजनेता हैं यह भारत यात्रा अब तक की भारत देश की सबसे बड़ी पदयात्रा रही।
हमारी आज की पीढ़ी के बहुत कम सदस्यों को ही पता होगा कि चंद्रशेखर समाजवाद के भारत के विख्यात मनीष जी आचार्य नरेंद्र देव जी के शिष्य थे राजनीति में उनकी राजनीतिक पारी का आगाज सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुआ और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेश जनता पार्टी जनता दल समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंच कर समाप्त हुआ।
एक बार की बात है जब इंदिरा गांधी के यहां राजनीतिक चर्चा पर चर्चा करने के लिए उस दौर के तमाम सारे राजनेता एकत्र होते थे और यह क्रम सिलसिलेवार चलता था इन राजनीतिक चर्चाओं की सभा की अध्यक्षता करते थे इंद्रकुमार गुजराल जी, इंद्र कुमार जी के बार बार कहने पर चंद्रशेखर भी उस सभा में शामिल हुए उस सभा में इंदिरा गांधी के द्वारा यह कहे जाने पर कि चंद्रशेखर क्या आप कांग्रेस में भी समाजवाद ला देंगे ? इस पर युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर ने बेबाकी से जवाब दिया की या तो कांग्रेस पार्टी मैं समाजवाद ला दूंगा या कांग्रेस पार्टी को विभाजित कर दूंगा समय ने आगे जाकर उनकी या भविष्यवाणी सत्य सिद्ध कर दी।
चंद्रशेखर का संसदीय जीवन 1962 से उत्तर प्रदेश की राज्य सभा में पहुंचकर शुरू हुआ इसके बाद 1984 से 1989 तक की अवधि को छोड़कर वह अपने जीवन की आखरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे।
उन्हें युवा तुर्क की संज्ञा दिए जाने का प्रमुख कारण यह भी रहा कि उनको कुछ परिवारों का सत्ता पर एकाधिकार रखना कतई पसंद नहीं था उन्होंने सदैव सत्ता पर एकाधिकार का विरोध किया 1974 में इंदिरा गांधी की अधीनता को अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी का विरोध किया और उसके विरोध में है उन्होंने तमाम तरह की यातनाएं झेली इंदिरा गांधी इसलिए चंद्रशेखर का विरोध करती थी कि वह सत्ता की राजनीति के मुखर विरोधी थे और लोकतांत्रिक मूल्यों का सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्धता रखने वाले राजनेता थे।
राजनीतिक छुआछूत की तो वह प्रबल तम विरोधी थे और कहते थे कि हम में से किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह बेवजह दूसरों की देशभक्ति पर शक करता घूमें।
चंद्रशेखर ने अपने पूरे जीवन काल में सिद्धांतों से कभी समझौता न करने का काम किया उन्होंने कहा था कि देश का यह दुर्भाग्य है कि उसके सभी लीडर धीरे-धीरे डीलर बनते जा रहे हैं कोई भी लोकप्रियता का खतरा उठा कर जनता को सच्चा नेता नहीं देना चाह रहा है सिद्धांतों की ही बात थी कि उन्होंने अपने जीवन पर्यंत कभी अपने पुत्रों पाल्यों को राजनैतिक रूप से कभी सक्रिय नहीं किया वरना लोगों की तरह वह भी अपने पुत्रों को राजनीति में अपने जीवित रहते हुए स्थापित कर सकते थे। आज के नेताओं को चंद्रशेखर जैसे समाज के प्रति जिम्मेदार नेताओं से सीख लेनी चाहिए।
✍️लेखक आजाद शक्ति सेवा संगठन के संस्थापक अध्यक्ष और पेशे से सामाजिक कार्यकर्ता व अधिवक्ता है।