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पार्टी पर नहीं, जाति देखकर दिए जाते हैं निकाय चुनाव में वोट

साढ़े तीन दशक हो गए, अभी तक अपना खोया वजूद नहीं खोज पाई भाजपा

कोंच/जालौनकोंच नगरपालिका के चुनाव हमेशा से काफी दिलचस्प रहे हैं। यहां पार्टी पर नहीं, जाति पर वोट देने की पुरानी परंपरा रही है। यही वजह है कि परिणाम हमेशा अप्रत्याशित ही मिले हैं। पिछले कई निकाय चुनावों में भाजपा की हार की मुख्य वजह भी यही रही है, पिछले साढ़े तीन दशक से भाजपा अपना खोया वजूद तलाशने की जद्दोजहद कर रही है। यहां तक कि पिछले चुनाव में सत्तारूढ़ दल होने का लाभ भी वह नहीं ले सकी थी।

निकाय चुनाव का विगुल अब कभी भी बज सकता है, लेकिन चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों ने जरूर अपना विगुल काफी पहले से फूंक रखा है। बिना आरक्षण का इंतजार किए फिलहाल अभी वे सब लोग चुनावी रिंग के अंदर हैं जो लड़ने की कसम खा चुके हैं, अब ये बात अलग है कि आरक्षण घोषित होने के बाद उनकी क्या स्थिति बनती है। यहां यह बताना बिल्कुल लाजिमी है कि कोंच नगर पालिका के चुनाव पार्टी पर न होकर विशुद्ध रूप से जातिगत आधार पर होते हैं। पिछले ज्यादातर चुनाव इस बात की तस्दीक करते दिखते हैं कि किस तरह जातीय समीकरण के आधार पर चुनाव जीते गए हैं।

भाजपा की अगर बात करें तो सत्ताधारी दल होने के बावजूद वह निकाय चुनाव में फेल रही है। यद्यपि भाजपा को शहरियों की पार्टी माना जाता है लेकिन कोंच निकाय क्षेत्र में यह आंकड़ा फेल माना जा सकता है। साल 2017 में हुए चुनाव इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में वोटों के जो आंकड़े रहते हैं वह मिथक नगरपालिका चुनाव में टूट जाता है। सही बात तो यह है कि भाजपा को वर्ष 1988 के चुनाव में जो सफलता मिली थी वह भी पार्टी के बूते नहीं मिली थी बल्कि चुनाव जीते तत्कालीन पालिकाध्यक्ष स्व. राधेश्याम दांतरे के जीवट वाले व्यक्तित्व और उनके जुझारूपन को लेकर मिली थी। उसके बाद से अब तक भाजपा निकाय चुनाव में अपना वजूद तलाश ही रही है।

पालिकाध्यक्ष पद की दौड़ में किन्नर भी –
आगामी दिनों में होने वाले निकाय चुनाव में पालिकाध्यक्ष पद की दौड़ में एक किन्नर भी है। उसकी दावेदारी जहां चौंकाने वाली है वहीं कहीं न कहीं खुद को जनसेवक कहते नहीं थकने वाले ऐसे लोगों के लिए आइना भी है जो वायदों पर खरा नहीं उतरते हैं और जनता की नजरों में उन्हें हिकारत से देखा जाता है। बता दें कि आसन्न निकाय चुनाव में पालिकाध्यक्ष पद की दौड़ में किन्नर सरोज का नाम जोरशोर से चल रहा है और उसके समर्थन में लोग जनसंपर्क भी कर रहे हैं। उसकी दावेदारी को युवाओं का एक वर्ग काफी पसंद भी कर रहा है।

आचार संहिता लगने से पहले तक ही है प्रचार की होड़ –
बिजली के खंभों और इमारतों पर टंगे पोस्टर, बैनर, होर्डिंग और फ्लैक्सी की ऐसी भरमार है कि सब कुछ गड्डमड्ड हो कर रह गया है। चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग यह भी जान रहे हैं कि आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होते ही प्रशासन इस प्रचार सामग्री को नोंचकर फेंक देगा सो जितना प्रचार करना है, अभी कर लो। बहरहाल, अभी तक लड़ाकों की दौड़ में वे सभी लोग शामिल हैं जिनको चुनाव लड़ना है। आगे जब आरक्षण घोषित होगा तब देखा जाएगा कि किसे चुनावी रिंग के अंदर रहना है और किसे बाहर का रास्ता देखना है। ये स्थिति पालिका अध्यक्ष पद और सभासदी दोनों की है।

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