”ऑन लाइन पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ढाई आखर ऑफ लाइन का पढ़े से पंडित होए“
यह नव निर्मित दोहा कबीर के दोहे की तरह यहां खत्म नहीं होता। आगे का किस्सा यूं है –
“ऑफ लाइन इम्तिहान दे-दे जग मुआ, रिजल्ट न सुधरे कोए, ढाई सवाल ऑन लाइन परीक्षा के, पहले दर्जे में पास सब होए“
यह दोहा कॉलेज यूनिवर्सिटी के उन प्यारे-प्यारे बालकों की मांग का समर्थन करने के लिए, जिन्होंने यह दो मांगें रखी हैं : कक्षाएं तो होनी चाहिए ऑफ लाइन यानी कैंपस में और परीक्षाएं हों ऑनलाइन यानी घर बैठकर ही वो इम्तिहान में लिखें। कितने नादान है वो लोग, जो बालकों की इस मांग को विरोधाभासी बता रहे हैं। यह कोई विरोधाभासी नहीं।
वाकई उनकी बात में पूरा दम है। ऑन लाइन परीक्षा के अंतर्गत घर बैठकर इम्तिहान लिखने से विद्यार्थियों का आत्मविश्वास बहुत बढ़ रहा है। घर से परीक्षा देने पर 40 प्रतिशत वाले 70 प्रतिशत वाले हो गए और कितने वसंत बीतने पर, जिनकी रि-अपियर अटकी थी वो भी क्लियर हो गई। इस व्यवस्था से वाकई सभी यूनिवर्सिटी के रिजल्ट में सुधार आया है। इसलिए परीक्षाएं इसी मोड में होते रहनी चाहिए। इसका राज बस इतना है कि भारत में परीक्षा को भूत कहते हैं। लेकिन जब परीक्षाएं घर चलकर आईं… तो परीक्षा के भूत ने मुंह की खाई।
उनकी यह दूसरी मांग भी वाजिब है कि क्लास कैंपस में लगनी चाहिए। वो यूं कि ऑफ लाइन यानी कैंपस में रहकर अपने संगी-साथियों संग हंस-ठहाका करके, कैंपस की हरियाली देखकर उनके दिव्यचक्षु खुलते हैं। भले ही कैंपस में क्लास लगने पर ज्यादातर कॉलेज, यूनिवर्सिटी विद्यार्थी कैफे में बैठ मित्रता धर्म निभाने के कारण क्लास में न जा पाएं। फिर भी कैफे में बैठे क्लास के ज्ञान को तीव्र धारण शक्ति से सूंघकर आत्मसात् कर जाते हैं।
वैसे भी कॉलेज, यूनिवर्सिटी के कैंपस की फिजां देख जवान बच्चे को जो ताकत मिलती है, वो उसे कहीं और मिल ही नहीं सकती। इतने दिन उनकी यह ताकत कोने में जंग खाए पड़ी थी। यह तो सच्चाई है कि ऑफ लाइन पढ़ाई का कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता। लेकिन क्लास लगाने के अलावा कैंपस के बिना भी दिल न लगने के और भी बहुत ज्ञात और अज्ञात कारण होते हैं। अंत में, अगर बच्चे परीक्षा के लिए ऑन लाइन करवट लेना चाहते हैं और क्लास के लिए ऑफ लाइन करवट होना चाहते हैं, तो उनकी यह इच्छा हमेशा-हमेशा के लिए मान ही ली जाए। इतनी छोटी-सी मांग तो बालक रख रहे हैं। और इन्होंने कौन-सा संसद के बिल रद्द करवाने की मांग रखी है। अब तो बालकों की सुध ले ही ली जाए। (लेखक – प्रदीप कुमार राय)