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एड्स के बारे में भय नहीं, जानकारी फैलाएं – सुग्रीव बाबू

उरई/जालौन। एड्स एक जानलेवा बीमारी है, जो किसी भी हर उम्र के व्यक्तियों को प्रभावित कर सकती है। खासतौर से युवा पीढ़ी में एड्स तेजी से फैल रहा है हैं। एड्स का ऐसे तो कोई इलाज नहीं है लेकिन यदि कोई व्यक्ति एचआईवी के संभावित संक्रमण में आता है तो एआरटी (एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी) सेंटर पर जाकर पीईपी (पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलेक्सिस) दवा ले सकता है। 28 दिन तक लगातार यह दवा लेने से एड्स के प्रभाव को खत्म किया जा सकता है। एडस के बारे में भय नहीं जागरुकता फैलाने की जरूरत है। यह बात जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ सुग्रीवबाबू ने कही। वह विश्व एडस दिवस पर मंगलवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कालपी में आयोजित जागरुकता कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। जालौन, कोंच व नदीगांव सीएचसी पर भी कार्यक्रम आयोजित किए गए और एचआईवी/ एड्स की जांच की गई।
डॉ सुग्रीवबाबू ने बताया कि यदि एड्स से लोगों को बचाना है तो समुदाय को इसके प्रति जागरूक होना बहुत जरूरी है। हर साल एक नए विषय के साथ एक दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता हैं। इस वर्ष की थीम एचआईवी/ एड्स महामारी समाप्त- लचीलापन और प्रभाव रखी गई हैं। उन्होंने बताया कि जनपद में वर्ष 2018 में 85, वर्ष 2019 में 87 और वर्ष 2020 में अभी तक 33 नए एड्स मरीज मिले है। जिले में 359 एड्स मरीज हैं, जिनका इलाज चल रहा है। ममता हेल्थ इंस्टीट्यूट फॉर मदर एंड चाइल्ड के परियोजना अधिकारी पुरुषोत्तम तिवारी ने बताया कि गर्भवती की एचआईवी की जांच अनिवार्य है। उसे प्रथम तिमाही में गर्भवती को अपनी जांच जरूर करानी चाहिए ताकि समय से उसका इलाज किया जा सके। इस दौरान कालपी सीएचसी के चिकित्साधिकारी डॉ सुंदर सिंह आदि मौजूद रहे।
यहाँ करा सकते है जांच :
जिले में एड्स की जांच के लिए जिला अस्पताल में आईसीटीसी (इंटीग्रेटेड काउंसिलिंग एण्ड टेस्टिंग सेंटर) है। वही गर्भवती में इसकी जांच के लिए दो पीपीटीसीटी (प्रिवेंटिंग पेरेंट टू चाइल्ड ट्रांसमिशन) सेंटर भी बने हुए हैं द्यये।
एड्स : एड्स यानि एक्वायर्ड इम्यूनों डिफिसिएंशी सिंड्रोम एक बीमारी है जो एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनों डिफिसिएंशी वायरस) से होती हैं और यह वायरस धीरे.धीरे व्यक्ति की संक्रमण से लडऩे की क्षमता कम कर देता हैं।
कारण : एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने से, संक्रमित ब्लड चढ़ाने से, संक्रमित सुई लगाने एवं यदि कोई महिला एचआईवी संक्रमण से ग्रसित है तो उसके होने वाले बच्चे को भी इस रोग से संक्रमित कर सकता हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिसके शुरुआती दिनों में किसी प्रकार का लक्षण सामने नहीं आते। बल्कि कुछ सालों के बाद इस बीमारी के लक्षण उभर के आते है जिसे व्यक्ति समझ नहीं पाता।
लक्षण : बुखार आना, शाम के समय पसीना आना, ठंड लगना, थकान महसूस होना, उल्टी आना, गले में खराश रहना, दस्त होना, खांसी होना, सांस लेने में समस्या होना, मांसपेशियों में दर्द होना, शरीर पर चकत्ते पडऩा आदि।
बचाव : एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ सुरक्षित शारीरिक सबंध बनाएँ, खून को चढ़ाने से पहले जांच लें, उपयोग की हुई सुइयों और टीके दुबारा न उपयोग करें, एक से ज्यादा लोगों के साथ यौन संबंध बनाते समय कंडोम का इस्तेमाल करें, माँ एचआईवी संक्रमित हो तो संस्थागत प्रसव कराएं।

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