मौसम और बाजार दोनों ने छला किसानों को, पैदावार भी गई और रेट भी
खेती किसानी पर मौसम की मुंदी मार ऐसी पड़ी कि अन्नदाता खुद दाने दाने को मोहताज हो गया

कोंच/जालौन। कभी सूखा और कभी अतिवृष्टि या ओलावृष्टि की मार झेल रहे किसानों के लिए बाजार भी नामाकूल बन कर सामने आए हैं जिसके चलते किसान पूरी तरह से टूट चुका है। एक तरफ खरीफ की फसल अत्यधिक बारिश के कारण जाती रही तो वहीं दूसरी तरफ रवी की फसल भी मौसम में यकायक आए बदलाव के कारण वक्त से पहले सूख गई जिसके चलते पैदावार में खासी कमी आई है। सबसे ज्यादा दुर्गति तो हरी मटर की फली की हुई है, लुढ़क कर जमीन पर आ गिरे बाजार भाव ने किसानों की रही सही कसर निकाल कर रख दी है।
जब खेतों की जुताई का समय था तब बेसाख्ता बारिश ने खेतों को ऐसा तालाब बनाया कि नब्बे फीसदी खरीफ की फसलें खेतों में ही सड़ गई। बैंकों और साहूकारों के कर्जों तले दबे अन्नदाता के लिए यह स्थिति किसी बज्राघात की तरह रही और वह पूरी तरह से टूटकर बिखर गया। खेतों में जलभराव इतने लंबे समय तक रहा कि रवी की फसल भी बुरी तरह प्रभावित रही। एक तो बुवाई में देरी हुई, खासतौर पर हरी मटर का उत्पादन करने वाले किसानों को इस बार भारी चपत लगी है क्योंकि बाजार में उसका उत्पाद मिट्टी मोल बिक रहा है। इसी बीच जब मौसम का रुख भी यकायक टेढ़ा हो गया, वक्त से पहले आई गर्मी से फसलें भी वक्त से पहले पक गईं जिससे पैदावार में भारी गिरावट आई है। बहरहाल, आलम यह है कि दूसरों का पेट भरने वाला अन्नदाता आज खुद अपनी और परिवार वालों की क्षुधा शांत करने के लिए परेशान है। सरकार अगर बाकई किसानों की हमदर्द है तो उसे आगे आकर उनकी इमदाद जरूर करनी चाहिए ताकि उसका पेट भरा रहे और वह दूसरों का भी पेट भरता रहे।