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बजट स्पेशल ! रेल सुविधा विस्तार मामले में फिर खाली रहे जनपद के हाथ

कमी नहीं है बजट को 'हिन्न की पूंछ' बताने वालों की

कोंच (पीडी रिछारिया)। अभी हाल ही में संसद में पेश हुए वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट को लेकर सत्ता दल और उसके साझेदार दल खुद की कितनी ही पीठ क्यों न थपथपा लें लेकिन सही बात तो यह है इस बजट के प्रावधानों को वे खुद भी नहीं समझ पा रहे हैं। चूंकि वे सत्ताधारी हैं सो उनके सामने सरकार के सुर में सुर मिलाते हुए हांजू हांजू करने की मजबूरी को भली प्रकार समझा जा सकता है।

इस बजट से जनपद वासियों को उस स्थिति में जब इलाकाई सांसद भारत सरकार में राज्यमंत्री पद सुशोभित कर रहे हैं, काफी उम्मीदें थीं। खासतौर पर रेल सुविधा विस्तार को लेकर जिले के लोग मान रहे थे कि उरई-महोबा और कोंच-भिंड रेल परियोजनाओं पर सरकार अपना उदारवादी चेहरा दिखा सकती है और इन दोनों परियोजनाओं में दोनों पर न सही, कम से कम एक के लिए तो बजट की व्यवस्था कर ही सकती है लेकिन बजट में जिले के हाथ खाली रहने से लोग मायूस हुए हैं।

फिलहाल, सत्ताधारी भाजपा और उसके सहयोगी दल भले ही बजट को मील का पत्थर बता रहे हों लेकिन मौजूदा बजट को ‘हिन्न की पूंछ’ बताने वालों की तादाद भी काफी बड़ी है। पूर्व बार संघ अध्यक्ष संजीव तिवारी, सहकारी क्रय विक्रय समिति के पूर्व अध्यक्ष हरिश्चंद्र तिवारी, सत्येंद्र गुर्जर रवा, सपा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रतिपाल सिंह गुर्जर आदि का कहना है कि बजट आम आदमी के लिए किसी धोखे से कम नहीं है, इसके ज्यादातर प्रावधान अच्छे अच्छों की समझ से बाहर की चीज है।

मील का पत्थर साबित होगा अमृत काल का यह बजट –
सत्ताधारी दल से बाबस्ता होने के कारण भाजपा नगर अध्यक्ष सुनील लोहिया की प्रतिक्रिया बेहद सदी सदाई है, उनका कहना है कि अमृत काल का है

पहला बजट, 2023-24 नए भारत की समृद्धि का संकल्प है, 130 करोड़ देशवासियों की सेवा का लक्ष्य है, यह राष्ट्र के समग्र उत्थान की अपेक्षाओं को पूरा करने वाला यह बजट है जो भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

बजट मायूस करने वाला, आगे जानी चाहिए थी रेल –
कांग्रेस अध्यक्ष राघवेंद्र तिवारी ने कहा कि यह बजट बेहद घटिया और मायूस करने वाला है, अमृत काल के इस बजट से रेल सेवा विस्तार को लेकर काफी उम्मीदें थीं।

लग रहा था कि पीएम मोदी अपनी कोंच भिंड रेल लाइन की उस घोषणा पर आगे बढ़ेंगे जो उन्होंने पहली बार देश की बागडोर थामते वक्त 2014 के बजट में की थी, लेकिन अफसोस है कि रेल के पहिए जहां के तहां थमे हैं। एट-कोंच रेल को आगे जाना चाहिए था।

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