सात महारथियों के चक्रव्यूह में फंसा अभिमन्यु, अब अर्जुन की ही है आस
माधौगढ़। कहते हैं जब सत्ता और सिंघासन मिलता है तो उसके इर्द-गिर्द चापलूस सिपहसालारों की फ़ौज इकठ्ठी हो जाती है, जिसकी मजबूत मकड़जाल में सत्तासीन उलझ जाता है और उसे अपने और पराये का बोध ख़त्म हो जाता है। अपने घुटन से साथ छोड़ने लगते हैं तो चाटुकार और नज़दीक आते जाते हैं। धीमे-धीमे फाँसलों की दरार गहरी होती जाती है। बिल्कुल ऐसी ही स्थितियों का सामना भाजपा प्रत्याशी विधायक मूलचंद निरंजन को करना पड़ रहा है। उनके खुद के व्यक्तित्व से लोग उन्हें जीत दिलाना चाहते हैं लेकिन पांच साल उनके चारों ओर चक्रव्यूह बनाकर रहे सात महारथियों के ख़्याल से ठिठक जाते हैं। कार्यकर्ताओं के विकास से ज्यादा खुद के विकास पर ध्यान देने वाले ऐसे शागिर्दों का क्षेत्र में बुरी तरह से विरोध है। जिनके लिए विधायक ने गांव स्तर में प्रधानी का रास्ता तैयार किया सबसे पहले सरकारी नलकूप दिया, ऐसे लोग भी चक्रव्यूह रचने वालों का विरोध करते सुने जा हैं। सात लोगों का विरोध भी स्वाभाविक है,क्योंकि इन लोगों ने मर्यादाओं को ताक पर रख दोतरफ़ा राजनीति की, नगर पंचायत, ब्लॉक और अन्य विकास निधियों पर अपना ही एकाधिकार जमाये रखा, अब निष्ठावान कार्यकर्ताओं और जनता के कटघरे में हैं। वह तो भला हो योगी और मोदी का जिनके नाम पर लोग अभी भी वोट देने पर अड़े हैं। अन्यथा चुनाव की स्थिति का आकलन करना भी ठीक न समझा जाता। विधायक मूलचंद निरंजन की कार्यशैली से किसी को पीड़ा नहीं फिर भी टिकट घोषित होने के पहले दिन से कई जगह विरोध का सामना करना पड़ा। लोगों की यह नाराजगी, गुस्सा पांच साल विधायक के घेरे रखने वालों के प्रति है। हालांकि कुछ जगह यह विरोध साजिशन और षडयंत्र के तहत है, जिसका सीधा असर परिणाम पर तो नहीं पड़ेगा। पर छवि धूमिल किये जाने का कुत्सित प्रयास तो है ही। गांव-गांव में प्रचार करते समय समर्थकों की भारी भीड़ जगह-जगह हुए विरोध के सुरों को कमजोर करती दिख रही है। भाजपा का टीम मैनेजमेंट, तमाम हिंदूवादी संगठनों के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की लंबी फ़ौज, सोशल मीडिया जैसे संसाधन चुनाव को तूफ़ानी किये है लेकिन अंदरखाने के कुचक्र से अभिमन्यु सम्हले रहे, इसके लिए कई अर्जुनों को चुनावी युद्ध में उतरना पड़ेगा।