उत्तर प्रदेशजालौनबड़ी खबर

शिक्षक दिवस के रूप में मनाया गया सावित्री बाई फुले का जन्मोत्सव

सेवानिवृत्त शिक्षकों एवं नवनियुक्त शिक्षकों किया गया सम्मानित
उरई/जालौनराष्ट्र माता सावित्री बाई फुले जन्मोत्सव शिक्षक दिवस के रूप में जालौन रोड जमुना पैलेस में मनाया गया। जिसमें शिक्षक गोष्ठी का आयोजन के अलावा सेवानिवृत्त शिक्षकों एवं नवनियुक्त शिक्षकों को सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजेंद्र चौधरी जिलाध्यक्ष ने की जबकि मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. वी. पी. अशोक आईपीएस एवं दिनेश कुमार विद्रोही प्रदेश अध्यक्ष तथा अति अतिवृष्टि अतिथि के रुप में डॉ. डी आर राहुल प्राचार्य पी जी कालेज दतिया, उर्मिला सोनकर खाबरी पूर्व सचिव एससी-एसटी आयोग उ. प्र. शासन लखनऊ जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप रामगोपाल वर्मा खण्ड विकास अधिकारी डकोर, आनंद भूषण खण्ड शिक्षा अधिकारी कदौरा, अमरजू लाल गौतम पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष मौजूद रहे जबकि कार्यक्रम का संचालन भूपेंद्र सिंह दोहरे जिला महासचिव ने किया। इस दौरान गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सावित्रीबाई फुले, भारत की पहली महिला शिक्षक, कवियत्री, समाजसेविका जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना रहा है। सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ। मात्र नौ साल की उम्र में उनकी शादी क्रांतिकारी ज्योतिबाफुले से हो गई, उस वक्त ज्योतिबा फुले सिर्फ 13 साल के थे उनके पति क्रांतिकारी और समाजसेवी थे, तो सावित्रीबाई ने भी अपना जीवन इसी में लगा दिया और दूसरों की सेवा करनी शुरू कर दी। 10 मार्च 1897 को प्लेग द्वारा ग्रसित मरीज़ों की सेवा करते वक्त सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग से ग्रसित बच्चों की सेवा करते हुए उन्हें भी प्लेग हो गया था, जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई। सावित्रीबाई ने अपने जीवन के कुछ लक्ष्य तय किये, जिनमें विधवा की शादी करवाना, छुआछूत को मिटाना, महिला को समाज में सही स्थान दिलवाना और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। इसी कड़ी में उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल खोलना शुरू किया. पुणे से स्कूल खोलने की शुरुआत हुई और करीब 18 स्कूल खोले गए। 1848 की बात है उस वक्त सावित्रीबाई फुले स्कूल में पढ़ाने के लिए जाती थीं। तब सावित्रीबाई फुले दो साड़ियों के साथ स्कूल जाती थीं, एक पहनकर और एक झोले में रखकर. क्योंकि रास्ते में जो लोग रहते थे उनका मानना था कि शूद्र अति शूद्र को पढ़ने का अधिकार नहीं है। इस दौरान रास्ते में सावित्रीबाई पर गोबर फेंका जाता था, जिसकी वजह से कपड़े पूरी तरह से गंदे हो जाते और बदबू मारने लगते स्कूल पहुंचकर सावित्रीबाई अपने झोले में लाई दूसरी साड़ी को पहनती और फिर बच्चों को पढ़ाना शुरू करतीं ये सिलसिला चलता रहा, लेकिन बाद में उन्होंने खुद के स्कूल खोलना शुरू कर दिया जिसका मुख्य लक्ष्य दलित बच्चियों को शिक्षित करना था। उन्होंने ने नौ छात्रों के साथ स्कूल शुरू और फिर सावित्रीबाई फुले ने 3 जनवरी,1848 यानी अपने जन्मदिन के दिन ही अलग-अलग जातियों की नौ छात्रों को एकत्रित किया और स्कूल की शुरुआत कर दी। ये मुहिम सफल हुई और अगले एक साल के अंदर अलग अलग स्थान पर सावित्रीबाई फुले, ज्योतिबाफुले ने पांच स्कूल खोल दिए। जो समाज उस वक्त लड़कियों को घर में रहने के लिए मजबूर करता था उस समाज के लिए सावित्रीबाई की मुहिम एक तमाचा थी। इसी मुहिम ने महिलाओं को सशक्त करने का काम किया और लोगों को इस बात को सोचने पर मजबूर कर दिया कि महिलाओं को भी पढ़ाई का अधिकार है और बराबरी का हक है. सावित्रीबाई फुले की ये कथन आज के दौर में भी बिल्कुल सटीक लगते हैं सावित्रीबाई फुले के द्वारा लिखी गई मराठी कविता का हिंदी उच्चारण जाओ जाकर पढ़ो लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती, काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो, ज्ञान के बिना सब खो जाता है। ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है इसलिए, खाली ना बैठो, जाओ, जाकर शिक्षा लो दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button