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वट वृक्ष की परिक्रमा कर महिलाओं ने पतियों की दीर्घायु के लिए की पूजा

कोंच/जालौन। सनातन संस्कृति में पर्वों और त्योहारों का विशेष महत्व है और इनके पीछे कई तरह की धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी होती हैं। वट सावित्री पर्व के साथ भी पति की दीर्घायु की कामना जुड़ी है। इस दिन सती सावित्री अपने दिवंगत पति सत्यवान के प्राण यम से वापिस ले आई थी। इसी अवधारणा के तहत सुहागिन महिलाओं ने सोमवार को वट वृक्ष की परिक्रमा कर अपने पतियों की दीर्घायु की कामना की।
कस्बे के अलावा आस-पास के इलाकों में वट सावित्री पर्व पूरी आस्था के साथ मनाया गया। सुहागिनों ने नख शिख श्रृंगार करके बरगद के पेड़ों की परिक्रमा की ताकि उनके पति की आयु लंबी हो। प्रेम, श्रद्धा और समर्पण की इस सनातन संस्कृति में यह व्रत एक पतिव्रता स्त्री की निष्ठा और दृढ निश्चय की कहानी कहता है। माना जाता है कि इसी दिन सती सावित्री ने यमराज के यम पाश से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। सनातन धर्म में वट सावित्री पूजा स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे करने से हमेशा अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। प्रचलित कथा के अनुसार जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तब सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को ऐसा करने से रोकने के लिए तीन वरदान दिए। एक वरदान में सावित्री ने मांगा कि वह सौ पुत्रों की माता बने। यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ गए। इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं और बिना पति के संतान कैसे संभव है। सावित्री की बात सुनकर यमराज को अपनी भूल समझ में आ गयी कि वह गलती से सत्यवान के प्राण वापस करने का वरदान दे चुके हैं। इसके बाद यमराज ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण सावित्री को सौंप दिए। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आयी और चने को मुंह में रखकर सत्यवान के मुंह में फूंक दिया तो सत्यवान जीवित हो गया। इसलिए वट सावित्री व्रत में चने का प्रसाद चढ़ाने का नियम है।

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