अयोध्या प्रसाद विश्वकर्मा आईटीआई कॉलेज में हवन पूजन के साथ मनाई गई भगवान विश्वकर्मा की जयंती

उरई। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में विख्यात संस्थान अयोध्या प्रसाद विश्वकर्मा आईटीआई अकोढ़ी दुबे में भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा विधि विधान एवं हवन पूजन के साथ सम्पन्न की गयी।
इस अवसर पर आईटीआई कॉलेज के अध्यक्ष प्रेम नारायण शर्मा ने कहा कि सम्पूर्ण भारतवर्ष में कोई ऐसा स्थान या व्यक्ति नहीं है। जिन्होने भगवान श्री विश्वकर्मा जी का नाम न सुना हो। जैसा कि विश्वकर्मा शब्द का अर्थ है भगवान श्री विश्वकर्मा जी विश्व की रचना करने वाला अर्थात कर्म का सम्बन्ध कर्ता से है। बिना कर्ता के कर्म की अपेक्षा नहीं की जा सकती। अतः सृष्टि की रचना करने वाले को ही विश्वकर्मा कहा गया है।
कॉलेज के प्रबंधक डॉ० मयंक ने इस अवसर पर कहा कि भगवान श्री विश्वकर्मा जी को भुवन पुत्र कहा जाता है। कहा जाता है कि ईश्वर किसी भी रूप में कहीं से भी प्रकट हो सकते है। जिस प्रकार भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान खम्भे से प्रकट हुए थे। दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान श्री विश्वकर्मा जी का जन्म महर्षि अंगिरा जिन्होनें अथर्ववेद की रचना की थी की पुत्री भुवना जो ब्रहम विद्या में निपुण थी। इसकी शादी आठवें वसु महर्षि प्रभास से हुई थी। इन्होने अपने पुत्र का नाम प्रजापति विश्वकर्मा रखा था।
उप प्रबंधक डॉ प्रियंक कुमार ने बताया कि ऋुग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 मन्त्र है जिनमें विश्वकर्मा जी को भौवन का देवता आदि कहा गया है। यजुर्वेद के 17 वें अध्याय में 16 से 31 मंत्रो में विश्वकर्मा को सूर्य और इंद्र का विशेषण रूप दिया गया है। कुछ विद्वानों ने विश्वकर्मा जी को भगवान विष्णु जी की नाभि से उत्पति मानकर ही विष्णु से विश्वकर्मा का जन्म मानते है। कहीं कुछ विद्वान ब्रह्म को ही विश्वकर्मा तथा ब्रह्म जी के पाँच मुखों को विश्वकर्मा के पाँच पुत्र मानते है। जिन्होनें अपनी-2 कला और कौशल से सृष्टि की सुन्दर रचना की है।
इस अवसर पर शशांक ने कहा कि आज देश और विदेशों में बहुत से कारखाने अनेक प्रकार की वस्तुओं के निर्माण में कार्य कर रहे है। उनके अन्दर काम करने वाले इन्जीनियर एवं कारीगरों में विश्वकर्मा जी केे गुण है। वें सभी विश्वकर्मा जी को निर्माण, सृजन एवं शिल्पकला के देवता के रूप में याद करते हैं। इस दिन सभी सरकारी और गैर-सरकारी इन्जीनियरिंग संस्थानों और कारखानों में मशीनों एवं औजारों की सफाई करके उनकी विषेश पूजा की जाती है।
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इस दिन कहीं-2 पर भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। मालिक लोग इस दिन अपने मेहनती कर्मचारियों को ईनाम भी देते हैं। आज भी राजमिस्त्री, लकडी के कारीगर और शिल्पकार अमावश्या के दिन उपवास रखते है। अपने औजारों की पूजा करके विश्राम करते है। प्राचीन समय में और वर्तमान समय में संसार की जो भी सुन्दरता दिखाई देती है उसका श्रेय भगवान विश्वकर्मा जी को उनके पुत्रों को विश्व कर्म को अपनाने वाले अभियन्ताओं को जाता है।
संरक्षक श्री लल्लूराम ने कहा कि विश्वकर्मा वंशियों का इतिहास परिश्रम और ईमानदारी का रहा है। इनके परिश्रम के बदले इन्हें जो भी मिलता है उसी में संतुष्ट रहकर कार्य करते रहते हैं। यह वास्तुशास्त्र और वास्तुकला के जनक देवशिल्पी विश्वकर्मा जी ही हैं जिन्होनें लोक मंगल की कामना करते हुए वास्तुशास्त्र का विधान बनाया। विश्वकर्मा जी तकनीकी ज्ञान विज्ञान के जनक के साथ-2, जल विद्युत व प्रकाश ऊर्जा के भी जनक है।
इस मौके पर प्रेम नारायण शर्मा, संरक्षक लल्लूराम विश्वकर्मा, उप प्रबंधक डॉ प्रियंक कुमार, शशांक शर्मा, नीरज कुमार, विक्रांत वर्मा, राजेन्द्र विश्वकर्मा, गजेंद्र विश्वकर्मा, मनीष, पूनम, नीलम, परशुराम विश्वकर्मा जगराम पाल, मंगली प्रसाद, कुलदीप मिश्रा, डॉ शिव कुमार पांचाल, राहुल, राजदीप, कीर्ति पांचाल, ज्योति, राजू कुशवाहा आदि लोग उपस्थित रहे।