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संगीत की शास्त्रीय विधा को जीवंत बनाए रखने का अनूठा प्रयास है झूला महोत्सव

रामलला मंदिर में आयोजित झूला महोत्सव में पक्के और सुगम संगीत पर झूम रहे हैं श्रोता

कोंच। कोंच का अति प्राचीन रानी लक्ष्मीबाई का गुरु स्थान ऐतिहासिक रामलला मंदिर हर साल होने वाले झूला महोत्सव के जरिए संगीत की शास्त्रीय विधा को जीवंत बनाए रखने की दिशा में अनूठी परंपरा कायम किए हुए है। सावन तीज से प्रारंभ होकर रक्षाबंधन तक चलने वाले इस झूला महोत्सव में स्थानीय और दूरदराज इलाकों के संगीत मर्मज्ञों का यहां जमावड़ा लगता है जो अपनी शास्त्रीय और सुगम संगीत की कला से भगवान रामलला को रिझाने का प्रयास करते हैं।

कस्बे के दक्षिण पूर्व में गांधीनगर मोहल्ले में स्थित अति प्राचीन रामलला मंदिर को रानी झांसी लक्ष्मीबाई के गुरु स्थान के रूप में भी जाना जाता है। इतिहास के जानकार बताते हैं कि महारानी लक्ष्मीबाई अपने गुरु महंत आत्माराम दास के दर्शन करने कई बार कोंच आईं। रामलला मंदिर को स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ कर भी देखा जाता है क्योंकि यह मंदिर स्वतंत्रता सेनानियों का ठिकाना रहा है जहां गोपनीय ढंग से उनकी रणनीतिक मंत्रणाएं होती थी। कोंच की यह ऐतिहासिक विरासत सांस्कृतिक रूप से भी काफी समृद्ध है। यहां का सुप्रसिद्ध झूला महोत्सव संगीत की शास्त्रीय विधा के अलावा सुगम संगीत के जानकारों के लिए भी पखवाड़े भर तक उम्दा मंच मुहैया कराता है और न केवल स्थानीय बल्कि दूरदराज क्षेत्रों से भी यहां आकर संगीत मर्मज्ञ अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। मंदिर के मौजूदा गद्दीधर महंत रघुनाथ दास के पावन सानिध्य में होने वाले इस आयोजन में संगीत के जाने-माने मर्मज्ञ अवकाश प्राप्त संगीत शिक्षक द्वय रामकृष्ण परिहार एवं ग्यासीलाल याज्ञिक व पुजारी गोविंद दास का खास योगदान रहता है जिसके चलते यह सांस्कृतिक परंपरा शताब्दी भर बाद भी कायम है और नवोदित तथा स्थापित संगीत प्रेमियों को प्रोत्साहित कर रही है।

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