साहित्य उपवन
सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा

अजय कुमार चतुर्वेदी (राज्यपाल पुरस्कृत शिक्षक)
ग्राम-बैकोना प्रतापपुर, सरगुजा
भारत धार्मिक आस्था वाला देश है। यहां के रहवासी पेड़-पौधों, पत्थरों और धातुओें में ही नहीं बल्कि नदियों में भी देवी देवताओं के दर्शन करते हैं। भारत में गंगा, गोदावरी, यमुना, सरस्वती, कावेरी, ब्रम्हपुत्र आदि महत्वपूर्ण नदियाँ हैं, जिन्हें प्राणदायनी माना जाता है। भारतीय जीवन और संस्कृति में नदियों का विशेष महत्व है। इनमें नदी गंगा भारतीयों के जीवन में धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है और इसी से जुड़ा है गंगा दशहरा का पावन पर्व दशहरा मेला। सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा पर्व बिल्कुल ही अनुठे ढंग से मनाया जाता है। इस अवसर पर यहाँ पांच दिनों तक मेला लगता है।
नदी गंगा की उत्पति और गंगा दशहरा
नदी गंगा की उत्पति के संबंध में मान्यता है कि “राजा दशरथ के पूर्वजों में अयोध्या के राजा सगर थे। इनके पुत्र का नाम असमंजस, असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान, अंशुमान के पुत्र का नाम दिलीप और दिलीप के पुत्र का नाम भगीरथ था। पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ ने अपने पुर्वजों की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कठोर तपरस्या कर माँ गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया था। ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी लोक में आने से पहले गंगा ब्रम्हाजी के कमण्डल में थी। राजा भगीरथ के कठोर तपस्या के फलस्वरूप गंगा ब्रम्हा के कमण्डल से शिव की जटा में प्रवाहित होती हुई पृथ्वी लोक में अवतरित हुईं। इस तरह राजा भगीरथ ने अपने पुरखों की अस्थियों को विसर्जित कर मुक्ति दिलायी।
शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को गंगा मईया पृथ्वी लोक में अपने साथ सम्पन्नता, हरियाली और शुद्धता लेकर अवतरित हुई थी। इसलिए गंगा दशहरा का पर्व देवी गंगा को समर्पित त्योहार है। मान्यता अनुसार गंगा का अवतरण भगवान शिव की जटा से हुआ है, इसलिए इस दिन शिव उपासना का भी पर्व मनाया जाता है। गंगा दशहरे के दिन से वर्षा का आगमन होने लगता है और दशों दिशाओं में हरियाली छाने लगती है। इसलिए इस दिन वर्षा के आगमन का भी स्वागत करते हुए खुशियाँ जाहिर कीजाती है। ऐसी मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी का जल स्तर दस हाथ बढ़ जाता है।
सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा
छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा का पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है। सरगुजावासियों की मान्यता है कि गंगा दशहरे के दिन पुरइन (कमल) की पत्ते से युक्त जलाशय में मां गंगा विराजती है। इसलिए जलाशय को गंगा तुल्य मानकर विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। गंगा दशहरे के दिन स्थानीय जलाशय को गंगा तुल्य मानकर साल भर आयोजित शुभ कार्यो के समान जैसे विवाह का मौर, कक्कन, कलश, बच्चे के जन्म के समय का नाल व छटठी का बाल आदि का विधि पूर्वक पूजा कर विसर्जित किया जाता है।