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पंचनद में कालेश्वर महादेव का चमत्कारी विग्रह

जगम्मनपुरदेश में पांच नदियों का एकमात्र संगम स्थल पंचनद एवं संगम तट पर स्थापित प्राचीन मंदिर व आश्रम अपने आप में अनूठे तथा चमत्कारी है।
संपूर्ण भारत वर्ष में पांच नदियों का संगम पंचनद अपने आप में अनूठा तीर्थ स्थल है, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी पंचनद को पर्यटक क्षेत्र घोषित कर इस पर अपना ध्यानाकर्षण किया है। इस संगम पर पांच नदियों के अतिरिक्त 4 जनपदों का भी संगम है। इटावा, जालौन, औरैया, भिंड की सीमाओं को जोड़ता यह पवित्र स्थल चारों जनपदों की सीमाओं के बंधन से मुक्त है। यहां के बाशिंदे व्यवहारिक रूप से जनपदों की सीमाओं की मर्यादा में बंधे न होने के कारण पंचनद तटों पर बने मंदिरों को अपना मानते हुए पूजा करते हैं। इसी तट पर इटावा की सीमा में हजारों वर्ष पूर्व स्थापित विराट शिव मंदिर जिसका वर्णन शिवपुराण में पृथ्वी पर 108 शिव विग्रह में पंचनद पर गिरीश्वर महादेव के रूप में आया है। द्वापर युग में गोकुल में यमुना नदी से समुद्र की ओर जाते समय कालिया नाग के द्वारा पंचनद पर स्थित गिरीश्वर महादेव की पूजा अर्चना करने एवं यमुना में संगम में निवास करने से गिरीश्वर महादेव का नाम कालेश्वर हो गया और पंचनद में संगम पर आज भी कालिया कुंड की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। द्वापर युग में हस्तिनापुर तदोपरांत पृथ्वीराज चौहान बाद में मराठा राजाओं के द्वारा पंचनद में कालेश्वर महादेव मंदिर का प्रबंध किया जाता रहा है। सबसे अंत में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया द्वारा इस मंदिर की पूजा एवं सभी प्रकार की आर्थिक प्रबंध किए जाते रहे लेकिन राजतंत्र समाप्ति के बाद एवं ग्वालियर महाराजा जीवाजी राव सिंधिया के निधन के उपरांत अब यह मंदिर क्षेत्रीय लोगों के द्वारा जुटाए गए संसाधनों से संचालित है। वैसे तो वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है किंतु शिवरात्रि एवं प्रति सोमवार तथा श्रावण मास में यहां भक्तों की अपार भीड़ जुटती है। मान्यता है कि पंचनद के कालेश्वर महादेव की पूजा करने से कालसर्प योग के कारण आने वाली विपत्तियों का नाश होता है।

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