उत्तर प्रदेशजालौनबड़ी खबर

पत्रकारिता के बदलते दौर में, धर्म व अर्थयुग की लड़ाई के बीच जूझता पत्रकार – विशाल वर्मा

उरई/जालौनपूरे मीडिया जगत के लिए इस समय सबसे बड़ी चिंता का एक ही विषय बना हुआ है और वह है पत्रकारिता में आ रही लगातार गिरावट पत्रकारिता के बदलते मूल्य अपने उद्देश्यों से भटक रही पत्रकारिता, जिससे पत्रकार तो वाकिफ हैं ही अखबार मालिक भी अंजान नहीं है पत्रकारों की ऐसी जमात जो लंबे समय से इस प्रोफेशन से जुड़ी हैं उनकी चिंता थोड़ी आज के पत्रकारों से ज्यादा है। कभी कभी ऐसी नौबत आ जाती है कि पत्रकारों को शाबासी मिलने के बजाएं उन पर मुकदमे भी दर्ज हो जाते हैं।
पैसे की होड़ में संस्थानो ने बदल दिये पत्रकारिता के मानकयह बात सच है कि वर्तमान युग में पत्रकारिता पीछे छूट गई हैं। अखबार व चैनलों में संपादक की भूमिका तो लगभग खत्म हो चुकी है। यहां तक कि संपादक और संपादकीय विभाग पूरी तरह से कमर्शियल हो चुके हैं। तेजी से पतन की ओर जा रही पत्रकारिता को बचाने की कवायद में जूझते पत्रकार को अपना वजूद बनाने की मशक्कत करनी पड़ रही है। बदलते दौर की इस पत्रकारिता में क्या सारी चिंता पत्रकार के लिए ही है। जो खुद कभी नहीं चाहता कि कोई इस प्रोफेशन के साथ खिलवाड़ करें। फिर गलती कहां है चिंता का विषय तो यही है कि दिन-रात की मेहनत और प्रोफेशन के प्रति सच्ची भावना वाले इस प्रोफेशन पर अब सवाल खड़े होने लगें हैं।
युवा पीढ़ी पर पत्रकारिता का ग्लैमर हावी – नई पीढ़ी का रुझान प्रोफेशन में भले ग्लैमर के चलते बढ़ा हो मगर उनके इस रुझान का अगर कोई फायदा उठा रहा है तो वह है तेजी से खुलने वाले चैनल और अखबार के संस्थान जहाँ पर पत्रकार बनने का कोई पैरामीटर नहीं है। पैसा कमाने की होड़ में चुनिंदा संस्थानो ने पत्रकारिता के मानकों में उलट फेर ला दिया है। डिग्री और अनुभव को भी यहां वैल्यू नही दी जाती हैं।आसान भाषा मे कहे तो पत्रकार बनना अब पहले से आसान हो गया है। लेकिन पत्रकारिता की चमक- धमक जैसी दिखने वाली इस दुनिया मे युवा वर्ग कहीं न कहीं अंधकार की ओर ही अपने कदम बढ़ा रहा है।
चंद दशकों में नोबेल से आम हुई पत्रकारिता – कुछ दशक पहले पत्रकारिता में वही लोग आते थे जिनमें देश सेवा या समाज सेवा करने की भावना ज्यादा होती थी उस समय इस पेशे में ज्यादा पैसा भी नहीं था मगर टीवी का चलन तेजी से बढ़ा तो युवा पीढ़ी इस क्षेत्र का ग्लैमर देख खिंचे चले आते हैं। वर्तमान में पत्रकारिता के स्तर को ऊंचा रखने की जरूरत है ताकि यह नोबेल पेशा आम ना बनने पाएं। पत्रकारिता आज किस मोड़ पर खड़ी है, यह किसी से ‍छिपा हुआ नहीं है। उसे अपनी जमात के लोगों से ही लोहा लेना पड़ रहा है इसके साथ ही प्रशासनिक चुनौतियां भी उसके सामने हैं। ऐसे में यह काम और मुश्किल हो जाता है। एक बात और पत्रकारिता ने जिस ‘शीर्ष’ को स्पर्श किया था, वह बात अब कहीं नजर नहीं आती। इसकी तीन वजह हो सकती हैं, पहली अखबारों की अंधी दौड़, दूसरा व्यावसायिक दृष्टिकोण और तीसरी समर्पण की भावना का अभाव। पहले पत्रकारिता मिशन होती थी, लेकिन अब इस पर पूरी तरह से व्यावसायिकता हावी है। यही कारण हैं “पत्रकार” इस भीड़ में खुद का अस्तित्व बचाने में लगा हुआ है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button