गुरु का इटौरा। 19वीं सदी में फैली समाज में छुआछूत सती प्रथा एवं बाल विवाह जैसी विभिन्न कुरीतियों को खत्म करने के लिए विभिन्न समाज सुधारक समय समय पर अपना योगदान देते रहें है उन्हीं समाज सुधारकों में महिलाओं की शिक्षा के प्रति अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वालीं सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। वे प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। उनको महिलाओं और दलित एवं आदिवासी समाज को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। सावित्री बाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना और दलित और आदिवासी महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था। ग्राम गुरु का इटौरा में गांव के युवा चित्रकार पुष्पेंद्र कुमार राज पुत्र श्री स्वामी दीन दिवाकर द्वारा बनाए गए सावित्रीबाई फुले के चित्र पर लोगों द्वारा फूल माला चढ़ाकर एवं मोमबत्ती जलाकर उनको याद किया गया। इस दौरान गांव के वरिष्ठ नागरिकों द्वारा सावित्रीबाई फुले के विचारों को आत्मसात किया गया। चित्रकार गांव में समय समय पर चित्रों को बना कर जागरूक करते रहते हैं। वहीं ग्राम पिपरायां (आटा) में समाज सेविका कल्पना भारती ने शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की भूमिका निभाकर तथा आयुषी बर्धन, शैंकी वर्धन, नेहा, नैंसी तथा बाबू ने छात्र छात्राओं के रूप में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया।