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माँ बाप के बाद जब बेटी को हुयी टीबी ! अब चैंपियन बनकर कर रही टीबी पीड़ितों के इलाज में मदद

उरई/जालौन। शहर के मोहल्ला नया पटेल नगर रामकुंड निवासी अफसाना (32) टीबी चैंपियन के रुप में काम कर रही है। वर्ष 2018 में वह क्षय रोग से ग्रसित हो गई थी। उनके पिता मुन्ना पान की गुमटी लगाते थे। उन्हें भी टीबी हो गई थी। इसके अलावा मां रहीसा बेगम भी टीबी से अलग अलग समय में ग्रसित रही हैं। इलाज के बाद उनकी टीबी ठीक हो गई थी। अफसाना बताती है कि उन्होंने टीबी बीमारी को बहुत नजदीक से देखा है और टीबी को लेकर लोगों के रवैये को भी देखा है। इसलिए उन्होंने ठान लिया था कि वह लोगों के बीच जाकर टीबी के खिलाफ लोगों के मन में पल रही भ्रांतियों को दूर करेगी और दूसरे लोगों को टीबी से बचाने की मुहिम में जुड़ेगी। अपनी टीबी की बीमारी दूर करने के बाद वर्ष 2019 से टीबी चैंपियन के रुप में काम कर रही है। वह सक्रिय क्षय रोगी खोज अभियान में भी काम कर चुकी है। अब तक 40 से अधिक क्षय रोगियों को खोजकर उनका इलाज भी करा चुकी है। वह इस काम को सेवा मानकर काम करती है।

भेदभाव के डर से अक्सर लोग टीबी बीमारी को छिपाते है जिसके कारण रोग बढ़ता है और औरों में भी फैलता है सामजिक अस्वीकृति के भय से क्षय रोगी स्वास्थय केन्द्रों पर उपचार के लिए नहीं आते हैं। इस तरह के सामाजिक भेदभाव और भय को न केवल समाज बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली को भी बदलने की ज़रुरत है।

टीबी के प्रति लोगो को जागरूक करने के लिए इसके बारे में निरंतर बताना आवश्यक है जिससे लोगो में टीबी के लक्षण को पहचानने की समझ बढ़े और वह तुरंत इसका पूर्ण इलाज करवाएं। टीबी की जांच और उपचार स्वास्थय केन्द्रों में उपलब्ध है। दवाएं भी मिलती है।

नेशनल स्ट्रेटेजिक प्लान फॉर ट्यूबरक्लोसिस :2017-2025: एलिमीनेशन बाय 2025 में स्पष्ट तौर से कहा है भेदभाव और भ्रांतियों को हटाना ज़रूरी है। इसके लिए एडवोकेसी, संचार और सोशल मोबिलिज़ेशन का इस्तेमाल करने का सुझाव भी दिया गया है जैसे मीडिया द्वारा भाषा का प्रयोग, विज्ञापन आदि द्वारा सन्देश भी शामिल हैं।

इन सब में टीबी से ठीक हुए लोगों और चैंपियंस का योगदान काफी रहेगा क्योंकि ऐसे लोग अपने अनुभव से लोगों को प्रभावित कर सकते है। इन्ही के वजह से टी बी पर आज खुलकर बात हो रही है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एनडी शर्मा बताते हैं कि टीबी बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है। सबसे कॉमन फेफड़ों की टीबी है| मरीज के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदें इन्हें फैलाती हैं। फेफड़ों के अलावा ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गले आदि में भी टीबी हो सकती है। फेफड़ों के अलावा दूसरी कोई टीबी एक से दूसरे में नहीं फैलती। टीबी ख़तरनाक इसलिए है, क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, सही इलाज न हो तो उसे बेकार कर देती है। समय से इलाज कराकर टीबी से मुक्ति पाई जा सकती है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी बताया कि भारत मुक्त टीबी के लिए अभियान चलाया जा रहा है। इसमें स्वास्थ्य विभाग की टीमें जनसहयोग से काम कर रही है।

पंजीकरण से इलाज तक –
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ डीके भिटौरिया कहते हैं कि टीबी की जांच से लेकर इलाज तक की सुविधा स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध है। यही नहीं टीबी मरीज का पंजीकरण होने के बाद इलाज होने तक मरीज को हर महीने पांच सौ रुपये पोषण भत्ते के रुप में उसके खाते में भेजे जाते हैं। उन्होंने कहा कि टीबी का पूरा इलाज कराना चाहिए। टीबी में इलाज छोड़ना खतरनाक होता है। इस वक्त 626 मरीज सरकारी अस्पतालों और 208 मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज ले रहे हैं।

जनपद को मिला सिल्वर मेडल –
सब नेशनल सर्टिफिकेट वर्ष 2023 में जनपद जालौन ने टीबी मुक्त कार्यक्रम के अंतर्गत सिल्वर मेडल प्राप्त किया जिसकी घोषणा 24 मार्च 2023 को वाराणसी में विश्व टीबी दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा की गई।

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ डीके भिटौरिया ने बताया कि वर्ष 2022-23 में टीबी मुक्त भारत अभियान के अंर्तगत जनपद जालौन को कांस्य पदक के लिए राज्य स्तर से नामित किया गया था, जिसके लिए जनपद की जिलाधिकारी चांदनी सिंह तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी के मार्गदर्शन में जनपद की जिला क्षय रोग नियंत्रण इकाई के द्वारा माइक्रोप्लानिंग कर कार्य प्रारंभ किया गया। इस कार्य में सहयोग के लिए राजकीय मेडिकल कॉलेज उरई से डॉ.विशाल अग्रवाल एवं डॉ. शैलेंद्र प्रताप सिंह तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से डॉ पवन कुमार पालीवाल के द्वारा अपनी निगरानी में सर्वे कार्य प्रारंभ किया गया, सर्वे में ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत टीमों ने अथक प्रयास किया तथा किये गए कार्य का मूल्यांकन विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष डॉ भारद्वाज एवं डॉ मनीष कुमार के द्वारा किया गया। जिससे जनपद को यह उपलब्धि हासिल हुई। जनपद जालौन के प्राइवेट चिकित्सकों, औषधि विक्रेताओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

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