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हिंदू समाज का बिखरता तानाबाना चिंता का विषय : इंद्र देवेश्वरानंद

कोंच/जालौन। हिंदू समाज का बिखरता तानाबाना चिंता का विषय है, इसे एकजुट होकर बचाने की जरूरत है। समाज के दलित वर्ग को जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला जिसके चलते यह वर्ग हिंदू समाज से छिटकता जा रहा है। यह बात युग प्रवर्तक राष्ट्रीय संत स्वामी इंद्र देवेश्वरानंद महाराज ने यहां नई बस्ती में अवधेश दीक्षित के आवास पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कही।

राष्ट्रीय क्रांतिकारी संत स्वामी इंद्र देवेश्वरानंद (इंद्रदेव महाराज) ने कहा कि देश का दलित और तथाकथित निचले तबके ने हिंदू और हिंदुत्व को बचाने के लिए बहुत बड़ी कुर्बानियां दीं हैं। इस वर्ग को उपेक्षित रखकर हिंदुत्व को लंबे समय तक अक्षुण्ण नहीं रखा जा सकता है। हिंदू और सनातन धर्म को अगर जिंदा रखना है तो सदियों से सेवा कार्य में जुटे वर्ग को समुचित सम्मान और बराबरी का दर्जा देना ही होगा। उन्होंने पाश्चात्य संस्कृति की ओर भटक रही युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाने और सनातन संस्कृति का ज्ञान देने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने चरित्र निर्माण पर बल देते हुए कहा कि व्यक्ति अगर चरित्र वान होगा तो उसे कीर्ति और धन प्राप्त होगा और उस धन का सदुपयोग वह सद्कार्यों में कर पाएगा। सामाजिक उन्नति भी तभी होगी जब व्यक्ति का चरित्र अच्छा हो वरना समाज उसे नकार देगा।

उन्होंने कहा कि भागवत कथा के माध्यम से वह लोगों खासतौर पर युवाओं को व्यसन मुक्त होने का संदेश देना चाहते हैं। भारत युवाओं का देश है, अगर युवा पीढ़ी व्यसनों में फंस कर खोखली हो जाएगी तो देश के विकास में वह कैसे अपना योगदान दे पाएगी। पाश्चात्य संस्कृति की ओर उन्मुख हो रहे युवाओं को उन्होंने भारतीय संस्कृति का दर्शन करने और उत्कृष्ट सनातनी परंपराओं को अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, भगवान कृष्ण सौ वर्ष से भी ज्यादा समय तक युवा रहे, उन्होंने विश्व को कर्मयोग, वैराग्य योग और पुरुषार्थ की शिक्षा इस जगत को दी है।

लिव इन रिलेशनशिप को लेकर पूछे गए एक सवाल पर उन्होंने कहा, लिव इन रिलेशनशिप का शाब्दिक अर्थ बुरा नहीं है क्योंकि सामाजिक जीवन में एक दूसरे के साथ रहकर ही जिया जा सकता है लेकिन इसके पीछे व्यक्ति की जो मानसिकता और व्यवहार है वह अनर्गल है। उन्होंने दो टूक कहा कि वह इस तरह के तौर तरीकों का बिल्कुल भी समर्थन नहीं करते हैं। महिला स्वतंत्रता को लेकर उन्होंने कहा कि वह भी मनुष्य हैं, उन्हें भी स्वतंत्रतापूर्वक जीने का अधिकार है लेकिन उसमें उच्छृंखलता नहीं होनी चाहिए। किसी के अधीन रहकर भी स्वतंत्र रहा जा सकता है।

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