मेरा अनुभव कहता है कि खामोशियां ही बेहतर हैं, वरना शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं … !

कोंच (पीडी रिछारिया)। वागीश्वरी साहित्य परिषद् की मासिक गोष्ठी श्री गुप्तेश्वर मंदिर में मोहनदास नगाइच की अध्यक्षता एवं कृष्ण कुमार बिलइया के मुख्य आतिथ्य व राजकुमार हिंगवासिया के विशिष्ट आतिथ्य में संपन्न हुई। संचालन सुनीलकांत तिवारी ने किया। मां वीणापाणि की अर्चना से प्रारंभ हुई गोष्ठी में संतोष तिवारी ने वाणी वंदना पढी।
कार्यक्रम अध्यक्ष मोहनदास नगाइच ने रचना पाठ किया, ‘मेरा अनुभव कहता है कि खामोशियां ही बेहतर हैं, वरना शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं।’ राजकुमार हिंगवासिया ने पढा, ‘यदि होगा फलरूप ज्ञान परमार्थ सुधर जाएगा, जिस फल की है चाह तुझे वह फल तुझको मिल जाएगा।’ सुनीलकांत तिवारी ने प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कही, ‘जख्म थे पांवों में लेकिन उम्र भर चलती रही, मुश्किलों के दौर में भी जिंदगी हंसती रही।’ भास्कर सिंह माणिक्य ने रचना पाठ किया, ‘आस्था के दीप जलाओ तो जानूं दिल की कालिख हटाओ तो जानूं।’ नंदराम स्वर्णकार भावुक ने रचना बांची, ‘रूप है अनंग शंभु शीश में है गंगधारे, कंठ में भुजंग सोहे जटाजूटधारी है।’ साहित्यिकार राजेशचंद्र गोस्वामी ने कहा, ‘दीप से दीप अब जलता नहीं, आदमी से अब आदमी मिलता नहीं।’ संतोष तिवारी सरल ने रचना पाठ किया, ‘तू खुद ही सब कुछ है मानव अपने अंदर उम्मीद जगा, जो रहते अबतक जग जाहिर उनसे हटकर तू मार्ग बना।’ आशाराम मिश्रा, राजेंद्र सिंह रसिक ने भी कविताएं पढीं। इस दौरान चंद्रशेखर नगाइच मंजू, कैलाश मिश्रा, मुन्ना लोहेवाले, नंदकिशोर, मयंक मोहन गुप्ता, संतोष राठौर, प्रमोद अग्रवाल, रामबिहारी सोहाने, चंद्र प्रकाश रावत, रमनलाल, नारायण दास स्वर्णकार, रामकृष्ण वर्मा, भोले अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण पुजारी, अशोक कुमार आदि मौजूद रहे।