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ब्राह्मण महासभा के तत्वाधान में मनाया गया चंद्रशेखर आजाद का शहीद दिवस

कोंच (पीडी रिछारिया) ब्राह्मण महासभा के तत्वाधान में महान स्वाधीनता सेनानी पं. चंद्रशेखर आजाद का 91वां शहीद दिवस मनाया गया। वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी देशभक्ति से युवाओं को सीख लेने का आह्वान किया।
ब्राह्मण महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष अलिकेश अवस्थी की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने सर्वप्रथम भगवान परशुराम और चंद्रशेखर आजाद के चित्रों पर माल्यार्पण और पुष्पार्चन किया। अलिकेश अवस्थी ने अपने संबोधन में कहा, सन् 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए। इस संस्था के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड किया और फरार हो गए। इसके पश्चात् सन् 1927 में ‘बिस्मिल’ के साथ चार प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रांतिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉन्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुंच कर असेंबली बम कांड को अंजाम दिया। ऐसा भी कहा जाता हैं कि आजाद को पहचानने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने 700 लोग नौकरी पर रखे हुए थे। आजाद के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सेंट्रल कमेटी मेंबर वीरभद्र तिवारी अंग्रेजों के मुखबिर बन गए थे और आजाद की मुखबिरी की थी। संगठन के क्रांतिकारी रमेश चंद्र गुप्ता ने उरई जाकर तिवारी पर गोली भी चलाई थी लेकिन गोली मिस होने से वीरभद्र तिवारी बच गए और गुप्ता की गिरफ्तारी हुई, फिर 10 साल की सजा हुई। रंजन गोस्वामी ने कहा, चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया था। झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे। अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे। वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर आजाद ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी। देश को आजाद कराने में उन्होंने मात्र पच्चीस साल की अवस्था में आज के ही दिन 27 फरवरी 2031 को मातृभूमि की बलिवेदी में खुद को हौम दिया था। इस दौरान अभयदत्त पांडे, अंशुल गोस्वामी, सुयश पाठक, देवेंद्र बबेले, प्रदीप पिपरैया, प्रियम वैद, अंकित तिवारी, अभय उपाध्याय, अनुज तिवारी, अंकुर दीक्षित, पवन तिवारी, राम तिवारी, शिवम चौबे, आशीष शुक्ला, शिवम शुक्ला, हिमांशु अवस्थी, संजय नगाइच, रंजन गोस्वामी, धर्मेंद्र बबेले, राघवेंद्र तिवारी, भास्कर दुवे, शिवराम दीक्षित, शुभम शुक्ला, आकाश दुवे, यश वाजपेयी आदि मौजूद रहे।

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