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कोंच विधान सभा बिखरने के दंश से उबर नहीं पा रहे हैं यहां के बाशिंदे

कोंच (पीडी रिछारिया) कोंच तहसील क्षेत्र के बाशिंदे भले ही विधानसभा चुनाव में अपना प्रतिनिधि चुनते हों लेकिन हकीकत यह है कि वे पोलिंग बूथ तक बहुत ही अनमने होकर वोट डालने जाते हैं। यहां के लोगों को लगता है कि वह अपने लिए नहीं, किसी पराए के लिए मतदान करने जा रहे हैं। उनका दर्द इसलिये भी लाजिमी है कि बर्ष 2007 तक वे ऐसा विधायक चुनते रहे हैं जिसे वे अपना कह सकते थे लेकिन 2012 से पहले हुये परिसीमन में बुंदेलखंड की जो दो सीटें खत्म की गईं उनमें कोंच भी शामिल थी। इस टूट और बिखरन के दंश से उबरने में उन्हें अभी वक्त लग सकता है। इलाकाई बाशिंदों का आरोप है कि तीन दफा यह सीट अनारक्षित रहने के बाद 1967 से 2007 तक सुरक्षित रही जिसके कारण ऐसा कोई जानदार नेता यहां नहीं बन सका जो यहां के लोगों के लिये असरदार पैरोकारी कर पाता। इसी का नतीजा है कि कोंच सीट खत्म हो गई और यहां के लोग सिर धुनते रह गए।
सरोवरों, बाग बगीचों, ऐतिहासिक, पुरा और सांस्कृतिक धरोहरों से पूरी तरह समृद्घ कोंच तहसील में अगर दृष्टिपात करें और यहां वहां पड़े शिलाखंडों और मंदिर-मस्जिदों का अध्ययन करें तो साफतौर पर कहा जा सकता है कि सांम्प्रदायिक सद्भाव के मामले में भी यह तहसील जिले की अन्य तहसीलों से बीस ही होगी। इसको अगर आबादी के लिहाज से देखा जाये तो 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 3 लाख 20 हजार 131 थी जो इन ग्यारह सालों में बढ कर करीब चार लाख से भी ज्यादा पहुंच गई है। कोंच तहसील क्षेत्र के माधौगढ विधानसभा में तीन चौथाई से ज्यादा इलाका मर्ज किया गया है और शेष एक चौथाई उरई विधानसभा में। खेती किसानी हो या बंज व्यापार, सांस्कृतिक गतिविधियां हों अथवा सामाजिक सरोकार, और तो और स्वातंत्र्य समर में भी कोंच से सैकड़ों स्वाधीनता सेनानियों की फौज ने बरतानबी हुकूमत से लोहा लेकर कोंच के नाम को स्वर्णाक्षरों में अंकित कराया। यानी, हर लिहाज से संपन्न होने के बाबजूद यहां के लोगों को अनाथ जैसी स्थिति में ला पटका गया है। इस टूटन के दंश को लेकर जब यहां के बुद्घिजीवी तबके से लेकर आम आदमी तक से सवाल किए गए तो उनकी सवालिया नजरें खुद इन सवालों के जबाब ढूंढती दिखीं।

अक्षम राजनैतिक नेतृत्व का परिणाम है कोंच विधानसभा का खत्म होना –
कस्बे के जानेमाने ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता पं. संजय रावत शास्त्री कोंच विधानसभा का अस्तित्व खत्म होने से काफी दुखी हैं। उनका कहना है कि अक्षम राजनैतिक नेतृत्व की वजह से यह विधानसभा जाती रही। अगर यहां कोई प्रभावशाली नेता होता तो कोंच विधानसभा आज अस्तित्व में होती। परिसीमन के वक्त यहां के नेता परिसीमन आयोग के समक्ष उपस्थित होकर अपना पक्ष रखते तो शायद आज कोंच विधानसभा का अस्तित्व भी होता।

आने वाली पीढ़ियाँ कोसेंगी नाकारा नेताओं को –
भारतीय किसान यूनियन के तहसील अध्यक्ष चतुरसिंह पटेल तो कोंच विधानसभा समाप्त होने के सवाल पर फट पड़े। उन्होंने कहा कि खेती किसानी में यूपी की सबसे समृद्ध तहसील होने का गौरव कोंच तहसील को प्राप्त है लेकिन विधानसभा खत्म होने से कोंच की पहचान ही खत्म सी हो गई है। इस त्रासदपूर्ण स्थिति के लिए आने वाली पीढियां यहां के नाकारा नेताओं को जरूर कोसेंगी।

कोंच क्षेत्र में 2007 तक चुने गए विधायकों की फेहरिस्त –

1952-चित्तर सिंह-कांग्रेस
1957-चित्तर सिंह-कांग्रेस
1962-विजय सिंह-स्वतंत्र पार्टी
1967-बसंतलाल-कांग्रेस
1969-बसंतलाल-कांग्रेस
1974-मलखान सिंह-जनसंघ
1977-कौशल किशोर-जनता पार्टी
1980-रामप्रसाद अहिरवार-कांग्रेस
1985-चौधरी श्यामलाल-कांग्रेस
1989-चैनसुख भारती-बसपा
1991-भानुप्रताप वर्मा-भाजपा
1993-चैनसुख भारती-बसपा
1996-दयाशंकर वर्मा-निर्दलीय
2002-दयाशंकर वर्मा-भाजपा
2007-अजय सिंह पंकज-बसपा

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