पंचायत चुनाव ! आरक्षण पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद दुविधा में पड़े प्रत्याशी
लखनऊ। पंचायत चुनाव में आरक्षण व्यवस्था पर सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ द्वारा दिए गए फैसले से पंचायत चुनाव के प्रत्याशी दुविधा में पड़ गए हैं। कोर्ट ने फैसले में कहा कि आरक्षण के लिए 2015 को आधार वर्ष माना जाएगा और उसी वर्ष की व्यवस्था के आधार पर ही चुनाव कराए जाएंगे। फैसले से चुनाव के लिए प्रत्याशियों द्वारा की गई तैयारियां धरी की धरी रह गई हैं। कोर्ट ने आदेश दिया कि आरक्षण की पूरी प्रक्रिया तय कर 25 मार्च तक सूची जारी करें और 25 मई तक पंचायत चुनाव संपन्न करवाएं। दरअसल, सरकार ने 1995 से 2015 तक आरक्षण प्रक्रिया को जीरो करते हुए नए सिरे से प्रक्रिया लागू कर आरक्षण सूची लागू की थी। सरकार का तर्क था कि चक्रानुक्रम होने के बावजूद पिछले 25 साल में कई ऐसी पंचायतें रही हैं जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला है वह आरक्षित हो जाएंगी लेकिन कोर्ट में सरकार अपने तर्क को साबित नहीं कर पाई। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि आरक्षण को लेकर जो पुरानी व्यवस्था थी उसे ही लागू किया जाए और 2015 को आधार वर्ष माना जाए। इस फैसले के बाद अब तय नहीं है कि कौन सी सीट सामान्य, कौन सी सीट अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होगी। इससे प्रत्याशियों की मुश्किल बढ़ेगी और खर्च भी बढ़ेगा। बता दें कि सरकार के नए फॉर्मूले पर आरक्षण सूची जारी होने के बाद प्रत्याशियों ने प्रचार के लिए बैनर व पोस्टर छपवा लिए थे और पूरी क्षमता से प्रचार करना शुरू कर दिया था पर अब उन्हें नई सूची का इंतजार करना पड़ेगा। नई सूची से ऐसा भी संभव हो सकता है कि जो सीट आज जिस वर्ग के लिए आरक्षित होने जा रही थी, 2015 के चक्रानुक्रम के अनुसार वह बदल जाएं अर्थात किसी अन्य वर्ग के लिए आरक्षित हो सकती है।
याचिका में उठाया गया था ये सवाल –
हाईकोर्ट ने यह फैसला उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया जिसमें पंचायत चुनाव में आरक्षण लागू किये जाने सम्बंधी नियमावली के नियम 4 के तहत जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत की सीटों पर आरक्षण लागू किया जाता है। कहा गया कि आरक्षण लागू किये जाने के सम्बंध में वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानते हुए 1995, 2000, 2005 व 2010 के चुनाव सम्पन्न कराए गए। याचिका में आगे कहा गया कि 16 सितंबर 2015 को एक शासनादेश जारी करते हुए वर्ष 1995 के बजाय वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए आरक्षण लागू किये जाने को कहा गया था। उक्त शासनादेश में ही कहा गया था कि वर्ष 2001 व 2011 की जनगणना के अनुसार अब बड़ी मात्रा में डेमोग्राफिक बदलाव हो चुका है लिहाजा वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानकर आरक्षण लागू किया जाना उचित नहीं होगा। कहा गया कि 16 सितम्बर 2015 के उक्त शासनादेश को नजरंदाज करते हुए, 11 फरवरी 2021 का शासनादेश लागू कर दिया गया। जिसमें वर्ष 1995 को ही मूल वर्ष माना गया है। यह भी कहा गया कि वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव भी 16 सितम्बर 2015 के शासनादेश के ही अनुसार सम्पन्न हुए थे। कोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते हुए यह फैसला सुनाया।