कालपी/जालौन। वैदिक एवं पौराणिक काल से ही भारत को विश्व गुरु का पद प्राप्त था। विश्व के समस्त धर्मों का स्रोत भारत है। सभी ने अपने अपने धर्मों की शिक्षा से प्राप्त की है। उक्त बात श्री व्यास क्षेत्र संस्कृत महाविद्यालय गणेशगंज कालपी के पूर्व प्रधानाचार्य डा. शिवशंकर शुक्ल शास्त्री ने कही। उन्होंने कहा कि भारत में उत्पन्न ब्राह्मणों से पृथ्वी की संपूर्ण मानव जाति ने अपने अपने धर्म की शिक्षा प्राप्त की थी। यह शिक्षा मानव के सर्वविध दुखों के समन एवं उन्नति के लिए थी। वर्तमान में विश्व गुरु का पद प्राप्त करने वाला भारत अपने उस वैशिष्ट्य अर्थात अपनी धार्मिक शक्ति को भूल चुका है अथवा उस पर पूर्ण विश्वास नहीं है। धार्मिक क्रियाओं में श्रद्धा और विश्वास का होना आवश्यक है। श्रद्धा विश्वास रूपी शिव और पार्वती के अनुग्रह के बिना सिद्ध लोग भी ईश्वर का दर्शन नहीं कर पाते हैं। धर्म शब्द का अर्थ किसी जाति सप्रदांय से नहीं अपितु प्रकारांतर से कर्तव्य शब्द का प्रर्याय है। जगत कल्याण की कामना कर्तव्य भी है कार्य पूर्ति के लिए मांत्रिक, यांत्रिक और तांत्रिक तीन प्रकार की व्यवस्थाएं हैं। पुराण साहित्य और प्राचीन इतिहास में इन क्रियाओं का बाहुलता से वर्णन है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कोरोना विश्व व्याप्त महामारी का स्वरूप धारण किए है। सारा संसार इससे व्यथित है परंतु अपनी उन प्राचीन शक्तियों पर किसी की दृष्टि नहीं जा रही है अथवा उन पर विश्वास नहीं है। धार्मिक, मांत्रिक क्रियाएं श्रद्धा और विश्वास पर आधारित हैं। इनसे युक्त होकर यदि कोरोना महामारी के विनाश के लिए अनुष्ठान प्रयोग किए जाएं तो निश्चित शत प्रतिशत सफलता प्राप्त होगी।