गौतमबुद्धनगर (नोएडा)। कोरोनावायरस के प्रकोप से आम जन जीवन कितना प्रभावित हुआ है, इसका अंदाजा हर किसी को है। लेकिन इस संकट की घड़ी में लोग एक-दूसरे का हाथ भी बंटा रहे हैं। नोएडा की एक 12 साल की बच्ची ने झारखंड के रहने वाले एक श्रमिक परिवार अपने गुल्लक के पैसों से फ्लाइट के जरिए घर भेजा, और अब वह गुल्लक के बचे 17 हजार रुपये भी जरूरतमंदों पर खर्च कर देना चाहती है।
निहारिका द्विवेदी की उम्र महज 12 साल है। वह नोएडा सेक्टर-50 में रहती हैं, और कक्षा सातवीं की छात्रा हैं। निहारिका ने आईएएनएस को बताया, “मैं लॉकडाउन में न्यूज देख रही थी। हर जगह माइग्रेंट्स के बारे में दिखा रहे थे। देखते देखते मुझे मेरी दादी की एक बात याद आ गई। मेरी दादी कहती हैं कि किसी के इमोशन जानने हैं तो उसकी आंखों मे देखो, तुम्हें उनका दुख पता चलेगा।”
निहारिका ने कहा, “प्रवासी श्रमिकों ने हमारी सोसाइटी डेवलप करने के लिए बहुत कुछ किया है, अब जब उन्हें जरूरत है तो हमें उनकी मदद करनी चाहिए। इस बारे में मैंने अपने माता-पिता से बात की तो उन्होंने मुझे सहयोग किया। फिर हमने एक एनजीओ से संपर्क किया और कुछ फोन किए तो मुझे झारखंड के एक परिवार के बारे में पता चला, जिसमें पति-पत्नी और उनकी बेटी थी, जो कि दिल्ली के एक शेल्टर होम में रह रहे थे और घर जानना चाहते थे।”
दरअसल, झारखंड के इस परिवार के तीन सदस्य प्यारी कोल, उसकी पत्नी शुशीला और बेटी काजल नोएडा में रहकर मजदूरी करते थे, और अपना गुजर-बसर करते थे। प्यारी कोल कैंसर से पीड़ित था और उसका इलाज चल रहा था। लॉकडाउन में काम बंद होने की वजह से तीनों बेरोजगार हो गए। किसी तरह दिल्ली पहुंचे, लेकिन आगे का कोई साधन नहीं मिल पाया। जिसकी वजह से वे शेल्टर होम में दिन गुजार रहे थे।
निहारिका ने बताया, “मुझे पता चला कि लड़की के पिता को कैंसर है, जिसकी वजह से उनकी जमीन तक बिक गई है। इसके बाद मैंने अपनी गुल्लक तोड़ी और उनके घर भेजने के लिए रांची तक फ्लाइट के टिकट बुक किए।” निहारिका के पिता गौरव द्विवेदी ने कैब बुक कर इस परिवार को शेल्टर होम से एयरपोर्ट तक पहुंचाया। रविवार शाम 5.30 बजे तीनों ने दिल्ली से रांची के लिए उड़ान भरी।
गौरव द्विवेदी ने बताया, “गुल्लक में कुल 48,530 रुपये थे। लगभग 20000 रुपये टिकट में लगे और हमने उनको 10 हजार रुपये नकद भी दिए, साथ ही खाने के पैकेट भी।” निहारिका ने आगे कहा, “मेरी गुल्लक में अभी लगभग 17 हजार रुपये बचे हुए हैं, और मैं इन पैसों से मैं किसी और जरूरतमंद की मदद करूंगी। मेरी मां ने मुझे कहा है कि हम फिर से गुल्लक में पैसे जमा करने शुरू करेंगे।” समाजसेवा का उदाहरण पेश करने वाली निहारिका बड़े होकर आईएएस ऑफिसर बनना चाहती हैं, और लोगों की सेवा करना चाहती हैं। वह सेना में भी जाने की इच्छा रखती हैं।