उत्तर प्रदेशलखनऊ

संस्कृत हमारी सभ्यता, दर्शन और ज्ञान की जड़ है

  • लखनऊ में हुआ संस्कृत नाटक’भारतीय शौर्यशिरोमणि वीर पोरस’ का मंचन

लखनऊ। “संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता, दर्शन और ज्ञान की जड़ है। जब हम संस्कृत के माध्यम से कला को जीते हैं, तो हम अपने अस्तित्व से जुड़ते हैं। यह बात मंगलवार को समाजिक संस्था यू टर्न एवं इनरसोल की संस्थापक रिचा तिवारी ने उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के तत्वावधान में आयोजित एक मासात्मक संस्कृत नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला एवं नाट्य मंचन का भव्य समारोह के दौरान कहीं। समारोह में संस्कृत नाटक’भारतीय शौर्यशिरोमणि वीर पोरस’ का मंचन हुआ। समारोह मंगलवार को गोमतीनगर के मनीषा मंदिर गोमती में संपन्न हुआ।

नाटक के कथाक्रम के अनुसार संस्कृत नाटक’भारतीय शौर्यशिरोमणि वीर पोरस’ भारत के स्वर्णिम इतिहास को उद्घाटित करता है — जब 326 ईसा पूर्व, सिकंदर का सामना महान भारतीय सम्राट पोरस से हुआ। जहाँ एक ओर विदेशी आक्रांताओं के सहयोगी बनते भारतीय शासकों की दुर्बलता सामने आई, वहीं पोरस की देशभक्ति, पराक्रम और सांस्कृतिक गरिमा ने भारत की लाज रखी। इस नाटक में यह दिखाया गया कि कैसे भारत के ज्ञान, विज्ञान और अध्यात्म ने न केवल शत्रु का मन बदला, बल्कि उसे जीवन के गहरे सत्य से भी परिचित कराया। गीता के संदेशों ने सिकंदर को प्रभावित किया और उसने भारत से सीख लेकर लौटने का निर्णय लिया। समारोह का संचालन समाजिक संस्था यू टर्न एवं इनरसोल की संस्थापक रिचा तिवारी ने किया।

एक मासात्मक संस्कृत नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला में लखनऊ के 20 सेअधिक युवाओं ने भाग लिया, जिन्हें नाट्य निर्देशिका मधुरी महाकाश द्वारा प्रशिक्षित किया गया । एक महीने तक चली इस गहन प्रशिक्षण यात्रा को विराम देते हुए “भारतीय शौर्य शिरोमणि वीर पोरस” संस्कृत नाटक का मंचन किया गया।
इस मौके पर आईएफएस (सेवानिवृत्त) यू. बी. तिवारी, मनीषा मंदिर की संस्थापक सरोजनी अग्रवाल, राजीव राधन (कोषाध्यक्ष लखनऊ मैनेजमेंट एसोसिएशन), नीरज अग्रवाल – अध्यक्ष मनीषा मंदिर संस्थान, श्रीमती मधुरिमा प्रधान (सेवानिवृत्त) प्रोफेसर लखनऊ यूनिवर्सिटी विशेष रूप से उपस्थित रहे और उन्होंने युवा प्रतिभाओं का उत्साहवर्धन किया।

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