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यमुना तट पर राधा कृष्ण को समर्पित महलनुमा चित्ताकर्षक मंदिर जहाँ जन्माष्टमी पर होता है भव्य कार्यक्रम

ग्रामीणों के सहयोग से प्रतिवर्ष होती है श्रीमद् भागवत कथा

कुठौंद (जालौन) जनपद जालौन में यमुना तट पर निर्मित अनेक मंदिरों की श्रृंखला में खेड़ा मुस्तकिल गांव में बना महलनुमा भव्य राधा कृष्ण मंदिर अद्वितीय एवं आश्चर्यचकित कर देने वाला है।

जनपद जालौन का धार्मिक एवं पौराणिक दृष्टि से बड़ा महत्व है। यहां पौराणिक एवं वैदिक कालीन ऋषि महाअथर्व ऋषि का आश्रम (पंचनद बाबा साहब मंदिर) सामवेद की श्रुतियों के रचनाकार महर्षि पाराशर, वेदव्यास भगवान श्री कृष्ण द्विपायन, क्रोंच ऋषि और उद्दालक ऋषि, लोमस ऋषि मुकुंदवन आदि अनेक महान संतों की तपोस्थली एवं आश्रम व अनेक पौराणिक मंदिर हैं जिनकी चर्चा गाहे-व-गाहे विभिन्न समाचार पत्रों में होती रहती है लेकिन कुठौंद क्षेत्र में यमुना तट पर राधा कृष्ण को समर्पित एक ऐसा भव्य मंदिर है जिसे प्रथम दृष्टया देखने पर किसी छोटे जागीरदार का महल प्रतीत होता है। विकासखंड कुठौंद के ग्राम खेड़ा मुस्तकिल में राज राजेश्वरी राधा रानी व भगवान श्री कृष्ण का यह भव्य मंदिर लगभग एक एकड़ जमीन पर निर्मित है इसके अतिरिक्त मंदिर के आसपास मंदिर की तमाम जमीन फैली है। इस मंदिर का मुख्य दरवाजा एवं मंदिर की बनावट किसी राजमहल की अनुभूति कराती है।

बताते हैं कि कोंच क्षेत्र अंतर्गत ग्राम भेंड़ के तालुकेदार भगवानदास रईस श्री कृष्ण व राधा रानी के अनन्य भक्त थे, उन्होंने अपने तालुकेदारी समाप्त होने से वर्ष 1948 में दुजू मिस्त्री जालौन से ग्राम खेड़ा मुस्तकिल में छोटा महल बनवाया जिसमें राजसी ठाठवाट से परिपूर्ण आवास एवं आम जनता से रू-व-रू होने योग्य मैदानी सिंहासन ,बग्धी खड़ी करने के लिए बहुत बड़ा गैरेज एवं तमाम ओहदेदार व नौकरों के लिए आवास, रसोईघर, बाग कुआं आदि निर्मित कराए एवं मध्य में भगवान श्री कृष्ण एवं राधा रानी का भव्य मंदिर निर्मित करवा कर यह सुंदर महल अपने आराध्य को ही समर्पित कर किया एवं स्थानीय पुजारी को वेतन देकर पूजा एवं भोग का प्रबंध किया। मंदिर के आस-पास की तमाम कृषि योग्य भूमि मंदिर को समर्पित कर वर्ष भर के लिए भविष्य के लिए मंदिर खर्च का समुचित प्रबंध कर दिया। आज श्रीजू राधिका जी व श्री कृष्ण जू के भक्त भगवानदास रईस तो नहीं रहे लेकिन उनके द्वारा निर्मित कराया गया यह विशाल मंदिर एवं इसकी बनावट व शिल्पकला पच्चीकारी आने-जाने वाले लोगों को फटी आंखों निहारने को बाध्य कर देती है एवं मंदिर में विराजमान राधा कृष्ण जी की भव्य मूर्तियों के सामने श्रद्धानवत कर देती है।

प्रतिवर्ष होती है श्रीमद् भागवत कथा –
मंदिर के बाहर बैठे लोगों ने बताया कि यहां गांव वालों के सहयोग से प्रतिवर्ष श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन होता है जिसमें क्षेत्र के हजारों लोग तन मन धन समर्पित कर इस धार्मिक अनुष्ठान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

जन्माष्टमी पर भव्य आयोजन –
मंदिर श्री राधा कृष्ण का है अतः जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाना लाजमी है लेकिन गांव व क्षेत्रीय लोगों की इस मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा है अतः वह जन्माष्टमी का पर्व बहुत हर्ष उल्लास और श्रद्धा के साथ धूमधाम से मनाते हैं।

राजस्थान के लाल पत्थरों से निर्मित –
यह मंदिर राजस्थानी वास्तुकला में निर्मित है जिसमें राजस्थान एवं आगरा के लाल पत्थरों का उपयोग कर बहुत सुंदर एवं सुंदर ढंग से बनाया गया है।

मंदिर की जमीन की उपज ले जाते तालुकेदार के परिजन –
मंदिर भले ही पुराना है और इसका निर्माण धार्मिक आस्था रखने वाले तत्कालीन तालुकेदार भगवानदास रईस ने करवा कर इसकी व्यवस्था हेतु इस मंदिर से खेती सम्बद्ध की थी लेकिन परिस्थितियां बदल गई हैं अब तालुकदार नहीं रहे उनके वंशज कुंवर अवधेश उर्फ लाल जी साहब हैं जो मंदिर से सम्वद्ध जमीन की उपज पर अपना अधिकार रखते हैं।

बगैर वेतन के पुजारी –
गांव वाले बताते हैं कि तालुकदार के वंशज कभी-कभी आते हैं लेकिन मंदिर की पूजा अर्चना एवं धार्मिक आयोजन प्रवंध में उनकी कोई रुचि नहीं है अतः गांव के ही एक कृष्ण भक्त जयराम सिंह बगैर वेतन पूजा करके पुजारी का दायित्व निर्वहन कर रहे है। पुजारी जयराम सिंह ने बताया कि मुझे अपने भगवान की सेवा करने में आनंद की अनुभूति होती है इस पर होने वाला व्यय भी वह स्वयं ही करते हैं ।

मुख्य मार्ग से 4 किलोमीटर पश्चिम में –
यह भव्य मंदिर कुठौंद औरैया रोड पर शंकरपुर से 4 किलोमीटर पश्चिम में है यहां तक पहुंचने के लिए लोक निर्माण विभाग के द्वारा पक्की डामरीकृत सड़क है।

(रिपोर्ट : पं० विजय द्विवेदी) 

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