देवउठानी एकादशी (ग्यारस) की पूजा के चलते लोगों ने की गन्ने की खरीदारी
कालपी। सनातन धर्म में वेद और पुराण में दिवाली के बाद पड़ने वाली सबसे बड़ी देवउठानी एकादशी जिसे ग्यारस के रूप में मनाई जाती है इसी दिन भगवान श्रीहरि विष्णु शयन से जागते हैं तथा शुभ कार्य इसी दिन से ही प्रारम्भ होते हैं। इस दिन भगवान को गन्ना चढ़ाने व पूजन करने की परम्परा के चलते लोगों ने एक दिन पूर्व गन्ने की जमकर खरीददारी की तथा 50 रूपये के दो गन्ने दुकानदारों ने आने वाले ग्राहकों को बेचे।
कार्तिक मास की देव उठानी एकादशी का सनातन धर्म में बड़ा ही महत्व है इस बार यह पर्व 12 नवम्बर दिन मंगलवार को है। वेद पुराण में दिवाली के बाद पड़ने वाली देवउठानी एकादशी ग्यारस के दिन ही तुलसी विवाह भी होता है। घरों में चावल के आटे से चौक बनाया जाता है। गन्ने के मंडप के बीच विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। पटाखे चलाए जाते हैं। देवउठनी ग्यारस को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। देवउठनी या देव प्रबोधिनि ग्यारस के दिन से मंगल आयोजनों के रुके हुए रथ को पुनः गति मिल जाती है। कार्तिक शुक्ल एकादशी का यह दिन तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है और इस दिन पूजन के साथ ही यह कामना की जाती है कि घर में आने वाले मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न हों। तुलसी का पौधा चूंकि पर्यावरण तथा प्रकृति का भी द्योतक है। अतः इस दिन यह संदेश भी दिया जाता है कि औषधीय पौधे तुलसी की तरह सभी में हरियाली एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रसार हो। इस दिन तुलसी के पौधों का दान भी किया जाता है। चार महीनों के शयन के पश्चात जागे भगवान विष्णु इस अवसर पर शुभ कार्यों के पुनः आरंभ की आज्ञा दे देते हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार एकादशी की तिथि का महत्व यूं भी बहुत है। अतः इस दिन को विशेष पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है। इस दिन से विवाह के अतिरिक्त उपनयन, गृह प्रवेश आदि अनेक मंगल कार्यों को संपन्न करने की शुरुआत कर दी जाती है। इस पर्व पर गन्ने का बहुत महत्व होता है इस लिये मनीगंज बजरिया,डाकखाने के सामने मुख्य बाजार टरननगंज समेत कई स्थानों पर गन्ने की दुकानें लगायी गयी जहां 50 रूपए को 2 गन्ने दुकानदारों ने ग्राहकों को बेचे।