अपने अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना के साथ सुहागिन स्त्रियों ने रखा करवा चौथ व्रत
कोंच। सुहागिन स्त्रियों ने पतियों की लंबी उम्र की कामना के साथ करवा चौथ व्रत रखा। रविवार को दिन भर के निर्जला उपवास के बाद रात्रि में चंद्र दर्शन कर अर्घ्य दिया और पतियों की पूजा कर पारायण किया। पतियों ने भी पत्नियों को वेशकीमती उपहार देकर उन्हें खुश कर दिया।
कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। सुहागिन स्त्रियों के लिए ये व्रत बहुत ही खास होता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर सरगी खाती हैं और इसके बाद पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं। शाम के समय सोलह श्रृंगार करती हैं और चद्रंमा निकलने के बाद छलनी से दर्शन करके अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद करवा चौथ के व्रत का पारायण किया जाता है। नगर के विद्वान पं. विनोद दुवे दरोगा जी बताते हैं, धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से पति को दीर्घायु प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य देने के बाद व्रत पारायण करने से वैवाहिक जीवन की परेशानियां दूर होती हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस व्रत के समान सौभाग्यदायक अन्य कोई व्रत नहीं है। इस दिन संकष्टी चतुर्थी भी होती है और उसका पारायण भी चंद्र दर्शन के बाद ही किया जाता है, इसलिए करवा चौथ पर गणेश जी का पूजन करने का भी विधान है। इसके अलावा करवा चौथ पर माता पार्वती, शिव जी और कार्तिकेय का पूजन भी किया जाता है। करवा चौथ व्रत की कहानी को लेकर एक और विद्वान पं. विष्णुकांत शास्त्री बताते हैं कि देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खींचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में जाता देखा तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छ कच्चे धागे में ऐसा बंधा कि टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे। करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और उसके पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो वह उन्हें शाप दे देगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं, ‘हे करवा माता, जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही उनके सुहाग की भी रक्षा करना।