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नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में गूंज रहे बुंदेली कार्तिक गीतों के तराने

जालौनइन दिनों नगर व ग्रामीण क्षेत्र में बुंदेली कार्तिक गीतों के तराने जिनके हम दासी बेई न मिले कजली वन ढूँढ आए श्याम न मिले सुबह के ब्रह्म मुर्हूत में गूंज रहे हैं। समूहों में कार्तिक स्नान के लिए निकलने वाली महिलाओं का समूह कार्तिक गीतों को गाती हुई निकल रही हैं। स्नान के बाद महिलाएँ मंदिरों में विधि वधान से पूजा अर्चना कर रही हैं। तुलसी महारानी नमो नमो, हरी की पटरानी नमो नमो, इस भजन में श्री तुलसी जी के आरती की गयी श्री तुलसी जी की आरती को कार्तिक माह में अत्यधिक महत्व है। कार्तिक के पूरे महीने भर तक चलने वाले इस स्नान पर्व को बेहद प्रभावी और सफल माना जाता है।
शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा ब्रह्म मुहूर्त में महिलाएं कार्तिक स्नान के लिए निकलती हैं। पूरे एक माह तक महिलाएं कार्तिक स्नान करती हैं एवं मंदिरों में जाकर भजन कीर्तन करती हैं। इस माह का महत्व पद्मपुराण और स्कंदपुराण में बड़े स्तर पर बताया गया है। मान्यता है कि व्रत और तप करने वाले साधक को विशेष लाभ मिलता है। कार्तिक माह के बराबर भगवान विष्णु के पूजन और विष्णुतीर्थ के लिए कोई दूसरा माह नहीं है। इस माह में महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठती हैं। इसके बाद सुबह स्नान करके विष्णु के राधा दामोदर स्वरूप की पूजा की जाती है। इस माह में दीपदान करना भी शुभ माना जाता है। हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। दूसरे महीनों की तुलना में कार्तिक माह में तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि तुलसी जी भगवान विष्णुजी को अति प्रिय है। जिससे तुलसी जी की पूजा के जरिए भगवान विष्णु तक अपनी बात आसानी पहुंचाई जा सकती है। शास्त्रों में भी इस बात का भी है कि तुलसीजी की बात भगवान विष्णु कभी नहीं टालते हैं। ऐसे में तुलसी जी की विधवत पूजा करने से सभी दुख, रोग सब दूर हो जाते हैं। इसके अलावा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन दिनों नगर सहित गांव-गांव में महिलाएं, युवतियां इन व्रत के अनुष्ठान को कर रही हैं। महिलाओं के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय इस व्रत के दौरान भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का चित्रण देखने मिलता है। हालांकि समय के साथ हुए सामाजिक बदलाव के कारण कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओं की संख्या घटती जा रही है। लेकिन जो भी महिलाएं अनुष्ठान कर रही हैं, उनका उत्साह कम नहीं हुआ है। वहीं गांवों में अब भी इस पर्व के प्रति महिलाओं की आसक्ति कम नहीं हुई है।

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