– खुला शैक्षिक संसाधन सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला स्रोत है – डॉ अंकित कुमार सिंह
– ओईआर भविष्य की चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाएगा – रीतेश कुमार
– गांधी महाविद्यालय में तीन दिवसीय कार्यशाला संपन्न उरई/जालौन। गांधी महाविद्यालय उरई में 3 नवंबर से 5 नवंबर तक कार्यशाला संपन्न हुई। उत्तर प्रदेश सरकार के तत्वाधान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी के निर्देश पर आयोजित इस कार्यशाला में संयोजक डॉ देवेंद्र नाथ आयोजन सचिव रितेश कुमार व प्राचार्य डॉ शिव कुमार ने समस्त प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। इस कार्यशाला के प्रथम दिवस में प्रमुख वक्ता डॉ जितेंद्र प्रताप दयानंद वैदिक महाविद्यालय उरई ने खुले शैक्षिक संसाधन के इतिहास वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए इसके महत्व को रेखांकित किया। पीपीटी स्लाइड के माध्यम में डॉक्टर जितेंद्र प्रताप ने ओ ई आर की विषय वस्तु को सरलता से सब तक पहुंचाया। कार्यशाला के द्वितीय दिवस को मुख्य वक्ता के रूप में डॉ अलका नायक पूर्व प्राचार्य गांधी महाविद्यालय उरई रही । उन्होंने खुले शैक्षिक संसाधन के वर्तमान स्वरूप पर प्रकाश डाला एवं कार्यशाला के द्वितीय दिवस में कार्यशाला संयोजक डॉ देवेंद्र नाथ ने भी अपनी बात रखी । कार्यशाला के तृतीय और समापन दिवस में संघ लोक सेवा आयोग से चयनित टैंगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय पोर्ट ब्लेयर में कार्यरत डॉक्टर अंकित कुमार सिंह ने यूट्यूब लाइक के माध्यम से जुड़े और शिक्षण में पुना कौशल की आवश्यकता पेडा गोगी ऑफ खुले शैक्षिक संसाधन के कौन-कौन से स्रोत हैं और अच्छे खुले शैक्षिक संसाधन की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। कार्यशाला के आयोजन सचिव रितेश कुमार ने बताया कि यह कार्यशाला अध्यापकों के कौशल उन्नयन हेतु थी। जिसमें लगभग 30 अध्यापकों ने प्रतिभाग किया एवं आयोजन सचिव ने यह भी अवगत कराया कि कार्यशाला मिश्रित मोड में रही जिसमें कुछ वक्ता ऑफलाइन हुआ कुछ वक्ता ऑनलाइन यूट्यूब लाइव से जुड़े रहे। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ शिव कुमार पटेल ने कार्यशाला के सफल आयोजन पर आयोजन समिति की काफी प्रशंसा की। इस मौके पर मंच संचालिका डॉक्टर रिचा सिंह राठौर व डॉक्टर गोविंद सुमन एनसीसी डॉ धर्मेंद्र कुमार दलवीर सिंह डॉ राकेश नारायण डॉक्टर मोनू मिश्रा डॉ रविंद्र त्रिपाठी डॉक्टर संदीप श्रीवास्तव डॉ अरुण सिंह डॉ वंदना आनंद डॉ सुनीता गुप्ता डॉक्टर रिचा पटेरिया आदि मौजूद रहे। तकनीक टीम से राहुल वर्मा का विशेष योगदान रहा।